"मेरी बात न भूलिएगा।"
उन्होंने कहा--- " तुम्हारा प्रस्ताव मेरे ध्यानमें हैं। यहांकी जल्दी तो तुम देख ही रहे हो । पर मैं उसे भूलमें न पड़ने दूंगा ।"
"अब सब ख़तम हुआ न? " सर फिरोजशाह बोले ।
"अभी तो दक्षिण अफ्रीकाका प्रस्ताव बाकी हैं न ? मि० गांधी बैठे कबके राह देख रहे हैं।" गोखले बोल उठे ।
"अपने उस प्रस्तावको देख लिया है ?" सर फिरोजशाहने पूछा।
"हां, जरूर।"
"आपको ठीक जंचा है ?"
“हां, सब ठीक है ।"
“तो गांधी, पढ़ो तो ।"
मेंने कांपते हुए पढ़ सुनाया।
गोखलेने उसका समर्थन किया ।
“सर्वसम्मतिसे पास---सव बोल उठे ।
"गांधी, तुम पांच मिनट बोलना ।" अच्छा बोले ।
इस दृश्यसे मुझे खुशी न हुई । किसीने प्रस्तावको समझ लेनेका कष्ट न उठाया । सब भाग-दौड़ में थे । गोखलेके देख लेने से औरोंने देखने-सुननेकी जरूरत न समझी ।
सुबह हुई ।
मुझे तो अपने भाषणकी पड़ी थी । पांच मिनटमैं क्या कहूंगा ? मैंने अपनी तरफसे तैयारी तो ठीक-ठीक की थी; परंतु आवश्यक शब्द न सुझते थे । इधर यह निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो लिखित भाषण न पढूंगा । पर ऐसा प्रतीत हुआ, मानो दक्षिण अफ्रीकामें बोलने की जो नि:संकोचता आ गई थी। वह् यहां खो गई ।
मेरे प्रस्तावका समय था और सर दीनशीनें मेरा नाम पुकारा । मैं खड़ा हुआ; सिर चक्कर खाने लगा। ज्यों-त्यों करके प्रस्ताव पढ़ा । किसी कविने अपनी एक कविता समस्त प्रतिनिधियोंमें बांटी थी । उसमें विदेश जाने और समुद्र-यात्रा करनेकी स्तुति की गई थी। मैंने उसे पढ़ सुनाया और दक्षिण अफ्रीका