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अध्याय १६ : लार्ड कर्जन का दरबार

के दु:खों की कुछ बात सुनाई। इतनेमें सर दीनशाने घंटी बजाई ! मुझे निश्चय था कि अभी पांच मिनट नहीं हुए हैं। पर मैं यह नहीं जानता था कि यह घंटी तो मुझे चेतावनी देने के लिए दो मिनट पहले ही बजा दी गई थी। मैंने बहुतकी आध-आध पौन-पौन घंटेतक बोलते सुना था, पर घंटी न बजती थी । इससे दुःख हुआ। घंटी बजते ही मैं बैठ गया । परंतु मेरी अल्प बुद्धिने उस समय मान लिया कि उस कविताके द्वारा सर फिरोजशाहको उत्तर मिल गया था ।

प्रस्ताव पास होने के संबंध तो पूछना ही क्या ? उस समय प्रेक्षक और प्रतिनिधिका भेद क्वचित् ही था । प्रस्तावको विरोध भी कोई न करता था । सब हाथ ऊंचा कर देते थे । तमाम प्रस्ताव एक-मतसे पास होते थे । मेरे प्रस्तावका भी यही हाल हुआ । इस कारण मुझे इस प्रस्तावका महत्व न जंचा; फिर भी कांग्रेस उस प्रस्तावका होना ही मेरे अनंदके लिए बस था। कांग्रेस की मुहर जिसपर लग गई उसपर सारे भारतवर्षकी मुहर है----यह ज्ञान किसके लिए काफी नहीं है ?

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लार्ड कर्जनका दरबार

कांग्रेस तो समाप्त हुई, परंतु मुझे दक्षिण अफ्रीका के कामके लिए कलकत्तेमें रहकर 'चेंबर ऑफ कामर्स ' इत्यादि संस्थाओंसे मिलना था, इसलिए मैं एक महीना कलकते ठहर गया। इस बार होटलमें ठहरने के बदले, परिचय प्राप्त करके 'इडिया क्लब में रहनेका प्रबंध किया । इसमें मुझे लोभ यह था कि यह गण्यमान्य हिंदुस्तानी ठहरा करते हैं, अतएव उनके संपर्क कर दक्षिण अफ्रीकाके कामों उनकी दिलचस्पी पैदा कर सकूंगा । इस क्लबमें गोखले हमेशा नहीं तो कभी-कभी बिलियर्ड खेलने आते थे। उन्हें इस बातकी खबर मिलते ही कि मैं कलकत्तेमें रहने वाला हूं, उन्होंने मुझे अपने साथ रहने का निमंत्रण दिया ! मैंने उसे सादर स्वीकार किया। परंतु अपने-आप वहां जाना मुझे ठीक ने मालूम हुआ । एक-दो दिन राह देखी थी कि गोखले खुद आकर अपने साथ मुझे ले गये ।