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अध्याय १७ : गोखलेंके साथ एक मास---१


हासकर थे, अर्थशास्त्री थे । सरकारी जज होते हुए भी कांग्रेसमें प्रेक्षकके रूपमें निर्भय होकर आते थे । फिर उनकी समझदारीपर लोगों को इतना विश्वास था कि सब उनके निर्णयको मानते थे। इन बातोंका वर्णन करते हुए गोखलेके हर्षक ठिकाना न रहता था

गोखले घोड़ा-गाड़ी रखते थे । मैंने उनसे इसकी शिकायत की। में उनकी कठिनाइयां न समझ सका था। "क्या आप सब जगह ट्राममें नहीं जा सकते ? क्या इससे नेताओंकी प्रतिष्ठा कम हो जायगी ?"

कुछ दु:खित होकर उन्होंने उत्तर दिया----" क्या तुम भी मुझे न पहचान सके ? बड़ी धारासभासे जोकुछ मुझे मिलता है उसे मै अपने काममें नहीं लेता। तुम्हारी ट्रामके सफर पर मुझे ईर्ष्या होती है। पर मैं ऐसा नहीं कर सकता । जब तुमको मेरे जितने लोग पहचानने लग जावेंगे तब तुम्हें भी ट्राममें बैठना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर हो जायगा । नेता लोग जो कुछ करते हैं, केवल आमोद प्रमोदके ही लिए करते हैं, यह मानने का कोई कारण नहीं । तुम्हारी सादगी मुझे पसंद है। मैं भरसक सादगीसे रहता हूं । पर यह बात निश्चित समझना कि कुछ खर्च तो मुझ जैसोंके लिए अनिवार्य हो जाता हैं ।"

इस तरह मेरी एक शिकायत तो ठीक तरहसे रद्द हो गई; पर मुझे एक दूसरी शिकायत भी थी और उसका वह संतोषजनक उत्तर न दे सके ।

“ पर आप घूमने भी तो पूरे नहीं जाते। ऐसी हालतमें आप बीमार क्यों न रहें ? क्या देश-कार्य से व्यायामके लिए फुरसत नहीं मिल सकती ?" मैंने कहा । ।

“ मुझे तुम कब फुरसत में देखते हो कि जिस समय मैं धूमने जाता ?" उत्तर मिला ।।

गोखले के प्रति मेरे मन में इतना आदर-भाव था कि मैं उनकी बातों का जवाब न देता था ! इस उत्तरसे मुझे संतोष न हुआ; पर मैं चुप रहा। मैं मानता था और अब भी मानता हूं कि जिस तरह हम भोजन-पानके लिए समय निकालते है उसी तरह व्यायाम के लिए भी निकालना चाहिए। मेरी यह नम्र सम्मति है। कि उससे देश-सेवा कम नहीं, अधिक होती है ।