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आत्म-कथा : भाग ३


समुद्रसे दूर मालूम हुए। सांताक्रुजमें एक सुंदर बंगला मिल गया। वहां रहने लगे व हमने समझा कि आरोग्यकी दृष्टि से हम सुरक्षित हो गये। चर्चगेट जानेके लिए मैंने वहांसे पहले दर्जेका पास ले लिया। मुझे स्मरण है कि कई बार पहले दमें अकेला में ही रहता है इसलिए मुझे कुछ अभिमान भी होता । कई बार बांदरासे चर्चगेट जानेवाली खास गाड़ी पकड़ने के लिए सांताक्रुजसे चलकर जाता ! मेरा धंधा आर्थिक दृष्टिले भी मेरी धारणासे ज्यादा ठीक चलता हुआ मालूम होने लगा। दक्षिण अफ्रीकाके मवक्किल भी मुझे कुछ काम देते थे। मुझे लगा कि इससे मेरा खर्च सहूलियतसे निकल सकेगा ।

हाईकोर्ट का काम तो अभी मुझे नहीं मिलता था; पर उस समय वहांपर जो 'मूट' (चर्चा) चलती रहती थी, उसमें मैं जाया करता था; पर उसमें भाग लेनेकी मेरी हिम्मत नहीं होती थी। मुझे याद है कि उसमें जमीयतराम नानाभाई काफी भाग लेते थे। दूसरे नये बैरिस्टरोंकी भांति में भी हाईकोर्ट के मुकदमे सुनने के लिए जाने लगा; पर वहां कुछ जानने के बदले समुद्रकी फर-फर चलने- वाली हवामें झोंके खाने में अच्छा आनंद मिलता था। दूसरे साथी भी ऊंघते ही थे, इससे मुझे शर्म भी न आती। मैंने देखा कि वहां ऊंबना भी 'फैशन' में शुमार है।

हाईकोर्टके पुस्तकालयका उपयोग शुरू किया और वहां कुछ जान-पहचान भी शुरू की। मुझे लगा कि थोड़े ही समयमें मैं भी हाईकोर्ट में काम करने लगूंगा।

इस प्रकार एक ओर मुझे अपने धंधेके विषयमें कुछ निश्चितता होने लगी, दूसरी तरफ गोखलेकी नजर तो मुझपर थी ही। सप्ताहमें दो-तीन बार चेंबरमें आकर वह मेरी खबर ले जाते और कभी-कभी अपने खास मित्रोंको भी ले आते थे। बीच-बीच में वह अपने काम करनेके ढंगमे भी मुझे वाकिफ करते जाते थे ।

पर मेरे भविष्य के विषयमें यह कहना ठीक होगा कि ईश्वरने ऐसा कोई भी काम नहीं होने दिया, जिसे करनेका मैंने पहले सोच रक्खा हो। जैसे ही मैने स्थिर होने का निश्चय किया और स्वस्थताका अनुभव करने लगा, एकाएका दक्षिण अफ्रीकासे तार आ गया--- " चैम्बरलेन यहां पा रहे हैं, तुम्हें शीघ्र आना चाहिए।" मेरा वचन मुझे याद ही था। मैंने तार दिया--- " खर्च भेजिए,