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पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/२७७

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अध्याय २ : एशियाई नवाबशाही

एशियाई नवाबशाही

इस नये महकमेके कर्मचारी यह न समझ सके कि मैं ट्रांसवालमें किस तरह आ पहुंचा। जो हिंदुस्तानी उसके पास आते-जाते रहते थे उनसे उन्होंने पूछ-ताछ भी की; पर वे बेचारे क्या जानते थे? तब कर्मचारियोंने अनुमान लगाया कि हो-न-हो अपनी पुरानी जान-पहचानकी वजहसे मैं बिना परवाना लिये ही आ घुसा हूं; और यदि ऐसा ही हो तो, उन्होंने सोचा, इसे हम कैद भी कर सकते हैं।

जब कोई भारी लड़ाई लड़ी जाती हैं तब उसके बाद कुछ समय के लिए राज-कर्मचारियोंको विशेष अधिकार दिये जाते हैं। यहां दक्षिण अफ्रीका में भी ऐसा ही हुआ था। शांति-रक्षाके लिए एक कानून बनाया गया था। इसमें एक धारा यह भी थी कि यदि कोई बिना परवाने के ट्रांसवालमें आ जाय तो वह गिरफ्तार मौर कैद किया जा सकता है। इस धाराके अनुसार मुझे गिरफ्तार करनेके लिए सलाह-मशविरा होने लगा; पर किसीको यह साहस न हुआ कि आकर मुझसे परवाना मांगे।

इन कर्मचारियोंने डरवन तार भेजकर भी पुछवाया था। वहांसे जब उन्हें खबर पड़ी कि मैं तो परवाना लेकर अंदर आया हूँ तब बेचारे निराश हो रहे; परंतु इस महकमेके लोग ऐसे न थे जो इस निराशासे थककर बैठ जाते। हालांकि में ट्रांसवाल में आ चुका था; परंतु फिर भी उनके पास ऐसी तरकीबें थीं जिनसे मेरा मि॰ चेंबरलेनसे मिलना जरूर रोक सकते थे।

इस कारण सबसे पहले शिष्टमंडलके प्रतिनिधियोंके नाम मांगे गये। यों तो दक्षिण अफ्रीका में रंग-द्वेषका अनुभव जहां जाते वहीं हो रहा था; पर यहां तो हिंदुस्तानकी जैसी गंदगी और खटपटकी बदबू आने लगी। दक्षिण अफ्रीकामें आम महकमोंका काम लोक-हितके खयालसे चलाया जाता है। इससे राज-कर्मचारियोंके व्यवहार में एक प्रकारकी सरलता और नम्रता दिखाई पड़ती थी। इसका लाभ, थोड़े-बहुत अंशमें, काली-पीली चमड़ीवालोंको भी