पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/२८५

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अध्यय ५ : निरीक्षणका परिणाम २६५ और नित्य एक या दो श्लोक कंठ करनेका निश्चय किया । सुबहका दतौन और स्नानका समय मैं गीताजी कंठ करनेमें लगाता । दतौनमें १५ और स्नानमें २० मिनट लगते । दतौन अंग्रेजी रिवाजके मुताबिक खड़े-खड़ करता । सामने दीवारपर गीताजीके श्लोक लिखकर चिपका देता और उन्हें देख -देखकर रटता रहता । इस तरह रटे हुए श्लोक स्नान करनेतक पक्के हो जाते । बीचमें पिछले श्लोकोंको भी दुहरा जाता । इस प्रकार मुझे याद पडता है कि १३ अध्याय तक गीता बर-जबान कर ली थी; पर बादको कामकी झंझट बढ़ गई । सत्याग्रहका जन्म हो गया और उस बालककी परवरिशका भार मुझपर आ पड़ा, जिससे विचार करनेका समय भी उसके लालन-पालनमें बीता, और कह सकते हैं कि अब भी बीत रहा है । गीता-पाठका असर मेरे सहाध्यायियोंपर तो जो-कुछ पड़ा हो वह वही बता सकते हैं; किंतु मेरे लिए तो गीता आचारकी एक प्रौढ़ मार्गदर्शिका बन गई हैं। वह मेरा धार्मिक कोष हो गई है । अपरिचित अंग्रेजी शब्दक हिज्जे या अर्थ को देखनेके लिए जिस तरह मै अंग्रेजी कोषको खोलता, उसी तरह अचार-संबंधी कठिनाइयों और उसकी अटपटी गुत्थियोंको गीताजीके द्वारा सुलझाता । उसके अपरिग्रह समभाव इत्यादि शब्दोंने मुझे गिरफ्तार कर लिया यही धुन रहने लगी कि समभाव कैसे प्राप्त करूं, कैसे उसका पालन करूं ? जो अधिकारी हमारा अपमान करे, जो रिश्वतखोर हैं, रास्ते चलते जो विरोध करते हैं, जो कलके साथी हैं, उनमें और उन सज्जनोंमें जिन्होंने हमपर भारी उपकार किया है, क्या कुछ भेद नहीं है ? अपरिग्रहका पालन किस तरह मुमकिन है ? क्या यह हमारी देह ही हमारे लिए कम परिग्रह है ? स्त्री-पुरुष आदि यदि परिग्रह नहीं हैं तो फिर क्या है? क्या पुस्तकोंसे भरी इन अलमारियोंमें आग लगा दूं ? पर यह तो घर जलाकर तीर्थ करना हुआ ! अंदरसे तुरंत उत्तर मिला-'हां, घरबारको खाक किये बिना तीर्थ नहीं किया जा सकता ।' इसमें अंग्रेजी कानूनके अध्ययनने मेरी सहायता की । स्नेल-रचित कानूनके सिद्धांतोंकी चर्चा याद आई। 'ट्रस्टी'शब्दक अर्थ, गीताजीके अध्ययनकी बदौलत, अच्छी तरह समझमें आया । कनून-शास्त्रके प्रति मनमें आदर वढ़ी । उसके अंदर भी मुझे धर्मक तत्व दिखाई पड़ा । 'ट्रस्टी' यों करोड़ोंकी संपत्ति रखते हैं, फिर भी उसकी एक पाईपर उनका