पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/२८९

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अध्याय ७ : मिट्टी और पानी प्रयोग बुनियाद था तो तुरंत जाकर उससे माफी मांगते और अपना दिल साफ कर लेते । मुझे इनकी यह चेतावनी बिलकुल ठीक मालूम हुई। बदरीका रुपया तो मैं चुका मका था, परंतु यदि उस समय और एक हजार पौंड बरबाद किया होता तो उसको चुकानेकी हैसियत मेरी बिलकुल नहीं थी । और माथे कर्ज ही करना पड़ता । कर्जके चक्कर मैं अपनी जिंदगीमें कभी नहीं पड़ा और उससे मुझे हमेशा अरुचि ही रही है। इससे मैंने यह सबक सीखा कि सुधार-कायके लिए भी हमें अपनी ताकतके बाहर पांव ने बढ़ाना चाहिए। मैंने यह भी देखा कि इस कार्यमें गीताके तटस्थ निष्काम कर्मके मुख्य पाठका अनादर किया था। इस भूलने आगेको मेरे लिए प्रकाश-स्तंभको काम दिया । निरामिषाहारके प्रचारकी देदीपर इतना बलिदान करना पड़ेगा, इसका अनुमान मुझे न था ! मेरे लिए यह जबरदस्तीका पुण्य था । मिट्टी और पानी प्रयोग ज्यों-ज्यों मेरे जीवनमें सादगी बढ़ती गई त्यों-त्यों बीमारियांके लिए दवा लेनेकी ओर जो अरुचि मुझे पहले हीसे थी वह भी बढ़ती गई। जब मैं डरनमें वकालत करता था तब डाक्टर प्राणजीवनदास मेहता मुझसे मिलने आये थे । उस समय मुझे कमजोरी रहा करती थी और कभी-कभी बदन सूज भी जाया करता था। उसका इलाज उन्होंने किया था और उससे मुझे लाभ भी हुआ था । इसके बाद देश आ जानेतक मुझे नहीं याद पड़ता कि मुझे कहने लायक कोई बीमारी परंतु जोहान्सबर्ग में मुझे कब्ज रहा करता था और जब-तब सिरमें भी दर्द हुआ करता था। इधर-उधरकी दस्तावर दवायें ले-लाकर तबियतको सम्हालता रहता था । खाने-पीने में तो मैं परहेजगार शुरूसे ही रहा हूं; पर उससे मैं कतई रोग-मुक्त नहीं हुआ । सुन बराबर यह कहता रहता था कि इस दवाके जंजालसे छूट जाऊं तो बड़ा काम हो । लगभग इसी समय मैचेस्टर में नो ये कफास्ट एसोसिएशन की स्थापनाके समाचार मैंने पढ़े । उसकी खास