पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३००

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यहां तो सिर्फ इतना बताना काफी है कि ज्यों-ज्यों में निर्विकार होता गया त्यों-त्यों में घर-संसार शांत, निर्मल और सुखी होता गया और अब भी होता जाता है । इस पुण्य-मरण से कोई यह न समझ लें कि इस आदर्श दंपती हैं, अथवा मेरी धर्म-पत्नमें किसी किस्मका दो नहीं है, अथवा हमारे आदर्श अब एक हो गये हैं। कस्तूरबाई अमला स्वतंत्र अादर्श रखती हैं या नहीं, यह तो वह बेचारी खुद भी शायद न जानती होगी । बहुत संभव है कि मेरे चरणकी बहुते बातें उसे अड़ की पसंद न आती हों; परंतु अब हम उनके बारे में एक-दूसरेसे च नहीं करते, करने में कुछ सर भी नहीं है। उसे न तो उसके मां-बापने शिक्षा दी है, न मैंने ही ! अब समय था, शिक्षा दे सका; परंतु उसमें एक गुण बहुत बड़े परिमाणमें है, जो दुसरी कितनी ही हिदू-स्त्रियों थोड़ी-बहुत में पाया जाता है । मन ही या बैन, मानमें हो या अनजान में मेरे पीछे-पीछे चलने उसने अपने जीबनकी सार्थकता' भनी है और स्वच्छ जीवन बितानेके मेरे प्रयत्न उसने कभी बाधा नहीं डाली। इस कारण यद्यपि हम दोनोंकी बुद्धि-शक्तिमें बहुत अंतर हैं, फिर भी मेरा खभाल है कि हमारा जीवन संतोषी, सुखी और ऊर्ध्वगामी हैं। अंग्रेजोंसे गाढ़ परिचय इस अध्यायतक पहुंचने पर, अब ऐसा समय आ गया है जब मुझे पाठकों की बताना चाहिए कि सत्यके प्रयोगोंकी यह कथा किस तरह लिखी जा रही हैं । जब कथा लिखनेकी शुरुआत की थी तब मेरे पास उसका कोई ढांचा तैयार न था । ने अपने साथ पुस्तके, डायरी अथवा दुसरे कागज-पत्र रखकर ही इन अध्यायोंको लिख रहा है । जिस दिन लिखने बैठता हूं उस दिन अंतरात्मा जैसी प्रेरणा करती है, वैसा लिखता जान हूं । यह तो निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि जो क्रिया मेरे अंदर चलती रहती हैं बह अंतरात्माकी ही प्रेरणा है ; परंतु बरसोंसे में जो अपने छोटे-छोट और बड़े-बड़े कहे जाने वाले कार्य करता आया हूं उनकी जब छान. बीन करता हूं तो मुझे यह कहना अनुचित नहीं मालूम होता कि वे अंतरात्माकी