पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३०४

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२६४ आज-कथा : भाग ४ कोई हिंदुस्तानी वहां झा नहीं सकता था और अपनी सुविधाके लिए मैं राजकर्मचारियोंसे कृपा-भिक्षा मांगने को तैयार न था । इससे मैं सोचमें पड़ गया । काम इतना बढ़ गया कि पूरी-पूरी मेहनत करनेपर भी इधर वकालतका और उधर सार्वजनिक कामका भार सम्हाल नहीं पाता था । अंग्रेज कारकुन--फिर वह स्त्री हो या पुरुष-मिल जानेसे भी थे। काम चल सकता था; पर शंका यह थी कि ‘काले' आदमी के पास भला कोई गोरा कैसे नौकरी करेगा ? परंतु मैंने तय किया कि कम-से-कम कोशिश तो कर देखनी चाहिए। टाइप-राइटरोंके एजेंटसे मेरा कुछ परिचय था। मैं उससे मिली अर कहा कि चदि कई टाइपिस्ट भाई या बहन ऐसा हो जिसे काले' आदमीके यहां काम करने में कोई उ न हो तो मेरे लिए तलाश कर दें। दक्षिण-अफ्रीका में लघु-लेन (शर्टङ) अथवा टाइपिंगका काम करनेवाली अधिकांशमें स्त्रियां ही होती हैं। पूर्वोक्त एजेंटने मुझे अश्वासन दिया कि मैं एक शोर्टहैंड-टाइपिस्ट आपको खोज दूंगा । मिस डिक नामक एक स्कॉच कुमारी उसके हाथ लगी । वह हाल ही स्काटलैइसे आई थी । जहाँ भी कहीं प्रामाणिक नौकरी मिल जाय वहां कृरतेमें उसे कोई आपत्ति न थी। उसे कभमें लगनेकी भी जल्दी थी । उस एजेंटने उस कुमारिकाको मेरे पास भेजा । उसे देखते ही मेरी नजर उस पर ठहर गई । मैंने उससे पूछा--- " तुमको एक हिंदुस्तानीके यहां काम करनेमें आपत्ति तो नहीं है ? " उसने दृढ़ता के साथ उत्तर दिया--- " बिलकुल नहीं।" “ क्या बेतन लोगी ?" * साढे सत्रह पौंड अधिक तो न होंगे ? " ।

  • तुमसे में जिस कामकी आशा रखता हूं वह ठीक-ठीक कर दोगी तो इतनी रकम बिलकुल ज्यादा नहीं है। तुम कब कामपर आ सकोगी ?"

| " आप चाहें तो अभी ।' | इस बहनको पाकर मैं बड़ा प्रसन्न हुश्रा और उसी समय उसे अपने सामने । बैठकर चिट्ठियां लिखवाने लगा । इस कुमारीने अकेले मेरे कारकुनका. ही। नहीं, बल्कि सगी लड़की या बहनका भी स्थान. मेरे नजदीक सहज ही प्राप्त .