पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३०९

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अध्याय १३ : * इंडियद अयानिधन २५६ पत्र समझते थे और इसमें उन्हें सत्याग्रह-संग्रामका तथा दक्षिण अफ्रीका-स्थिद्ध हिंदुस्तानियोंकी दशाका सच्चा चित्र दिखाई पड़ता था ।। इस पत्रके द्वारा मुझे रंग-बिरंगे मनुष्य-स्वभावको परखनेका बहुत अवसर मिला है इसके द्वारा मैं संवादक और अाहकके बीच निकट और स्वच्छ संबंध बांधना चाहता था। इसलिए मेरे पास ढेर-की-हेर दिदियां ऐसी अतः जिनमें लेखक अपने अंतरको मेरे सामने खोलते थे। इस सिलसिलेमें तीखे, कडुए, मीठे तरहतरकै पत्र और लेख मेरे पास आते है उन्हें पढ़ना, उनपर विचार करना, उनके विचारोंका सार निकालकर उन्हें जवाब देना, यह मेरे लिए बड़ा शिक्षादायक काम हो गया था। इसके द्वारा मुझे ऐसा अनुभव होता था मानो में वहांकी बातों और बिजारोंको अपने कानोसे सुना हैं। इससे मैं संपादककी जिम्मेदारीको खुद समझने लगा और अपने समाजके लोगोंपर जो नियंत्रण मेरा हो सके उसके बदौलत भाबी संग्राम इक्य, सुशोभित और प्रबल हुअा ।। | इंडियन ओपीनियन के प्रथम मासके कार्यकाल में ही मुझे यह अनुभव हो गया था कि समाचार-पत्रोंका संचालन सेवा-भावसे ही होना चाहिए । समाचार-पत्र एक भारी शक्ति है; परंतु जिस प्रकार निरंकुश जल-प्रवाह कई गांवोंको दुबो देता और फसलको नष्ट-भ्रष्ट कर देता है उसी प्रकार निरंकुश कलमको धारा भी सत्यानाश कर देती है। यह अंकुश यदि बाहरी हो तो वह इस निरंकुशतासे भी अधिक जहरीला साबित होता है । अतः लाभदायक तो अंदर ही अंकुश यदि इस विधा-अशिमें कोई दो न हो तो, भला बताइए, संसारकै कितने अखवार कायम रह सकते हैं ? परंतु सवाल यह है कि ऐॐ शिजूल अखबारोको बंद भी कौन कर सकता है ? और कौन किसको कि जूल' बता सकता है ? सच बात यह है कि कामकी और फिजूल दो 7 बातें संसारमें एक साथ चलती रहेंगी । मनुष्यके बस में तो सिर्फ इतना ही है कि वह अपने लिए पसंदगी कर लिया करे ।