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अस्मि-कथा : भाग ४ उसमें सब बीमार रखे जायं । परंतु उसे साफ करनेकी जिम्मेदारी म्युनिसिपैलिटीने त ली । मकान बड़ा मैला और गंदा था। हम लोगोंने खुद लगकर उसे साफ किया । उदारचेता भारतीयोंकी सहायतासे चारपाई इत्यादि मिल गई और उस समय काम चलानेके लिए एक खासा अस्पताल बन गया। म्युतिमि लिटीने एक नई-परिचारिका--भेजी और उनके साथ बरांडकी बोतल और बीमारोंके लिए अन्य आवश्यक चीजें दीं । डाक्टर गाडझे ज्यों-के-त्यों तैनात रहे ।। नर्सको हम शायद ही कहीं रोगियोको छूने देते थे। उसे खुद तो छूने से परहेज न थी; बह थी भी भलीमानस । किंतु हमारी कोशिश यही रही कि जहांतक हो वह खतरेमें न पड़े। तजवीज यह हुई थी कि बीमारोंको समय-समयपर बांडी पिलाई जाय। हमसे भी नर्स कहती कि बीमारीसे अपने को बचानेके लिए आप लोग थोड़ी-थोड़ी बरांडी पिया करो। वह खुद तो पीती' ही थी। पर मेरा मन वाही नहीं देता था कि बीमारोंको भी वरांडी पिलाई जाय ! तीन बीमार ऐसे थे जो बिना बरांडीके रहनेको तैयार थे । डा० गाडफ़ेकी इजाजतसे मैंने उनपर मिट्टीके प्रयोग किये । छातीमें जहां-तहां दर्द होता था वहां-वहां मैंने मिंट्टीकी पट्टी बंधवाई। इनमें से दो बच गये और शेष सब चल बसे । बीस रोगी तो इस गोदाममें ही मर गये ।। म्युनिसिपैलिटीकी ओर से दूसरे प्रबंध भी जारी थे। जोहान्सबर्गसे सात मील दूर एक लेजरेटो अर्थात् संक्रामक रोगियोंका अस्पताल था, वहां तंबू खड़ा किया गया था और उसमें ये तीन रोगी ले जाये गये थे । प्लेगके दूसरे रोगी हों तो उन्हें भी वहीं ले जाने का इंतजाम करके हम इस कार्यंसे मुक्त हो गये। थोड़े ही दिन बाद हमें मालूम हुआ कि उस भली नर्सको भी प्लेग हो गया और उसीमें बेचारीका देहांत हो गया । यह कहना कठिन है कि ये रोगी क्यों बच गये और हम लोग प्लेगके शिकार क्यों न हो सके ? पर इससे मिट्टीके उपचारपर मेरा विश्वास और दवाके तौरपर भी बरांडीका उपयोग करनेमें मेरी अश्रद्धा बहुत बढ़ गई। मैं जानता हूं कि इस श्रद्धा और अश्रद्धाको निराधार कह सकते हैं। पर उस समय इन दो बातोंकी जो छाप मेरे दिलपर पड़ी और जो अबतक कायम' । है, उसे मैं मिटा नहीं सकता और इस मौकेपर उसका जिक्र कर देना आवश्यक