पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३१७

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अध्याय १६ : महामारी--२ ३९७ समझता हूँ । | इस महामारी फैल निकलते ही मैंने एक बड़ा पत्र अखबारोंमें लिखा था । उसमें यह बताया गया था कि लोकेशनके म्यूनिसिपैलिटीके कब्जे में आनेके बाद जो लापरवाही वहां दिखाई गई उसकी तथा जो प्लेग फैला उसकी जिम्मेदार म्यूनिसिलिटी है। इस पत्रके वैदौलत मि० हेनरी पोकने मेरी मुलाकात हुई और वही स्वर्गीय जोसेफ डोकसे भी मुलाकात होनेका एक कारण बन गया था । पिछले अध्याय में इस वातका जिक्र कर चुका हूं कि मैं एक निरामिष भोजनालयमें भोजन करने जाता था। वहां मिस्टर झाल्बर्ट बेल्ट मेरी भेट हुई थी। रोज हुम साथ ही भोजनालयमें जाते और खानेके बाद साथ ही घूमने निकलते ।। मि० वेस्ट एक छोटेसे छापेखाने में साझीदार थे। उन्होंने अखबारों में प्लेग-संबंधी मेरा वह पत्र पढ़ा और जब भोजनके समय भोजनालयमें मुझे नहीं पाया तो बेचैन हो उठे । मैंने तथा मेरे साथी' सेवकोंने प्लेगके दिनों अपनी खुराक कम कर ली थी। बहुत समयसे मैंने यह नियम बना रखा था कि जबतक किसी संक्रामक रोगको प्रकोप हों तबतक पेट जितना हल्का रखा जा सके उतना ही अच्छा । इसलिए मैंने शामुका खाना बंद कर दिया था और दोपहरको भी ऐसे सुस जाकर वहां भोजन कर आता जबकि इस तरहके खतरोसे अनेको बचानेकी इच्छा करनेवाले कोई भोजनालयमें न आते हों। भोजनालयकै मालिकके साथ तो मेरा घनिष्ट परिचय था ही । उससे मैंने यह वात कह रक्खी थी कि मैं इन दिनों प्लेगके रोगियोंकी सेवा-शुश्रूषामें लगा हुआ हूं, इसलिए औरोफो अपनी छुतसे दूर रखना चाहता हूँ । इस तरह भोजनालयमें मुझे न देख कर मि० बेस्ट दूसरे या तीसरे ही दिन सुबह मेरे यहां आ धमके। मैं अभी बाहर निकलनेकी तैयारी कर ही रहा था कि उन्होंने आकर मेरे कमरेका दरवाजा खटखटाया ! दरवाजा खोलते ही वेस्ट बोले “ आपको भोजनालय न देखकर मैं चितित हो उठा कि कहीं आप भी प्लेगके सपाटेमें न आ गये हों ! इसलिए इस समय इसी विश्वाससे अाया हूं। कि आपसे अवश्य भेंट हो जायगी । मेरी किसी मददकी जरूरत हो तो जरूर