पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३२०

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अत्-कथा : भाग १ करनेमें कुछ समय लगना स्वाभाविक था ! तबतकके लिए यह पहरेका प्रबंध किया गया था । इससे लोगोंमें बड़ी चिंता फैली, परंतु मैं उनके साथ उनका सहायक ----इससे उन्हें बहुत तस्कीन थी । इनमें कितने ही ऐसे गरीब लोग भी थे, जो अपना रुपया-पैसा घरमें गाड़कर रखते थे। अब उसे खोदकर उन्हें कहीं रख़ना था । ॐ न बैंकको जानते थे, न बैंक उन्हें । मैं उनका बैंक बना । मेरे घर प्योक्रा & र हो गया। ऐसे समय में सुला मेहुलताना क्या ले सकता था ? किसी तरह मुश्किलसे इसका प्रबंध कर पाया । हमारे बैंकके मैनेजरके साथ में अच्छा परिचय था। मैंने उन्हें कहलाया कि मुझे बैंक में बहुतेरे रुपये जमा कराने हैं ? बैंक शाम तौरपर तांबे या चांदी के सिक्के लेनेके लिए तैयार नहीं होते । फिर यह भी अंदेशा था कि प्लेग-स्थानों से आये सिक्कोको छूनेमें क्लर्क लोग आनाकानी करें। किंतु मैनेजरने मेरे लिए सब तरहकी सुविधा कर दी है यह बात तय पाई कि रुपये-पैसे जंतु-दाशक पानीमें धोकर बैकमें जमा कराये जायं । इस तरह मुझे याद पड़ता है कि लगभग ६०,००० पौंड बैंकमें जमा हुए थे । मेरे जिन भवक्किलोंके पास अधिक रकम थी उन्हें मैंने एक निश्चित अवधिके लिए बैंकमें जमा करानेकी सलाह दी, जिससे उन्हें अधिक ब्याज मिल सके। इससे कितने ही रुपये उन मवक्किलों के नामसे बैंकमें जमा हुए । इसका परिणाम यह हुआ कि कितने ही लोगों को बैंकोंमें रखनेकी आदत पड़ी ।। | जोहान्सबर्ग के पास ‘क्लिप्स फुट फार्म' नामक एक स्थान है। लोकेशन्ननिवासियोंको बहां एक स्पेशल ट्रेनसे ले गये। यहां म्यूनिसिपैलिटीने उनके लिए अपने खर्च से घर बैठे पानी पहुंचाया। इस तंबूके गांवका नजारा सैनिकोंके , पड़ावकी तरह था । लोग ऐसी स्थिति रहनेके आदी नहीं थे, इससे इन्हें मानसिक दुःख तो हुआ । नई जगह अटपटी मालूम हुई, किंतु उन्हें कोई खास कष्ट नहीं उठाना पड़ा । मैं रोज बाइसिकलपर जाकर वहाँ एक चक्कर लगा आता । तीन सप्ताह तक इस तरह खुली हवामें लोगोंकी तंदुरुस्तीपर जरूर अच्छा असर हुआ । और मानसिक दुःख तो प्रथम चौबीस घंटे पूरे होने के पहले ही चला गया था। फिर तो धे आनंदसे रहने लगे । में जहां जाता वहां कहीं भजन-कीर्तन भौर कहीं खेलकूद आदि होते हुए देखता ।।