पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३२४

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अत्मक र ४ १६ फिनिक्सकी स्थापना सुबह होते हैं। मैंने सञसे पहले बेस्टसे इस सबंधों बातें कीं । 'सर्वोदय'का जो प्रभाव मेरे मनपर पड़ा वह मैंने उन्हें कह सुनाया और सुझाया कि 'इंडियन प्रोपीनियनको एक खेतपर ले जायं तो कैसा ? वहां सब एक साथ रहें, एकसा भोजन-खर्च लें, अपने लिए सब खेती कर लिया करें और बचतके समय में इंडियन ओपीनियन का काम करें। वेस्टको यह बात पसंद हुई। भोजन-खर्चको हिसाब लगाया गया तो कम-से-कम तीन पौंड प्रति मनुष्य अाया। उसमें काले-गोरे का भेद-भाव नहीं रखा गया था । । परंतु प्रेसमें काम करनेवाले तो कुल ८-१० आदमी थे। फिर सवाले यह था कि जंगलमें जाकर बसनेमें सबको सुविधा होगी या नहीं ? दूसरा सवाल यह था कि सब एकसा भोजन-खर्च लेनेके लिए तैयार होंगे या नहीं ? आखिर इस दोनोंने तो यही तय किया कि जो इस तजबीज में शरीक न हो सकें वे अपनः वेतन ले लिया करे---- किंतु आदर्श यही रक्खा जाय कि धीरे-धीरे सब कार्यकर्ता संस्थावासी हो जायं ।। | इस दृष्टिले मैंने समस्त कार्य-कत्तसे बातचीत शुरू की। मदनजीतको । यह बात विलकुल पसंद न हुई । उन्हें अंदेशा हुआ कि जिस चीजमें उन्होंने अपना जी-जान लगाया उसे मैं कहीं अपनी मूर्खतासे एकाध महीनेमें ही मिट्टीमें न मिला इ। उन्हें भय हुआ कि इस तरह ‘इंडियन ओपीनियन बंद हो जायगड़ा, प्रेस भी दृट जायगा और सब कार्यकर्ता भाग खड़े होंगे । । मेरे भतीजे छगनलाल गांधी उस प्रेसमें काम करते थे। उनसे भी मैंने : वेस्टके साथ ही बात की थी। उनपर परिवारका बोझ था; किंतु बचपनसे ही। उन्होंने मेरे नीचे तालीम लेना और काम करना पसंद किया था। मुझपैर उनका बहुत विश्वास था । इसलिए उन्होंने तो बिना दलील और हुज्जतके ही हो । कर ली और तबसे आजतक वह मेरे साथ ही है । ." तीसरे थे गोविः सामी' शीर्दैन । वहु भी शामिल हो गये । दूसरे ६ जयि ।