पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३२७

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अध्याय २० : पहली रात था । और यदि बड़ी कल अड़ जाय तो ऐसी सुविधा वहां नहीं थी कि इतने बड़े कारका पत्र तुरंत छापा जा सके। इसने पत्रके उन अंक बंद रहनेका ही अंदेड या । इस दिक्कतको दूर करनेके लिए अखबारका प्रकार छोटा कर दिया कि कठिनाईके समयपर छोटी केलको भी पांव चलाकर अङ्गवार, थोड़े ही पन्ने क्यों न हो, प्रकाशित हो सके । । अभ-कालमें 'इंडियन ओपीनियन की प्रकाशन-तिथिक अली को सवको थोड़ा-बहुत जागरण करना ही पड़ता था । पत्रको भने छोटे-बड़े सब लग जाते और रातको दस-बारह बजे यह काम खत्म होता है परंतु पहली रात तो इस प्रकार की बीवी जिसे कभी नहीं भूल सकते । पन्नोंका चौखटा तो मशीपर कस गया, पर एंजिन अड़ गय; उसने चलनेसे इन्कार कर दिया । एजिनको जाने और चलानेके लिए एक इंजिनियर बुलाया गया था। उसने अौर वेस्टर्न खुब माथा-पच्ची क; पर एंजिन टस-से-दस न हुआ । नब सब चितामें अपना-सा मुंह लेकर बैठ गये । अंतको बेस्ट निराश होकर मेरे पास शाये । उनकी आंखें सुझसे छलछला रही थीं। उन्होंने कहा, “अब आज तो एं जिनके चलनेकी आशा नहीं और इस सुप्ताह हुन अखबार सयपर न निकाल सकेन ।'

  • अगर यही बात है तब से अपना कुछ दम नहीं, पर इस तरह आंसू बहाने की कोई आवश्यकता नहीं है और कुछ कोशिश कर सकते हों तो कर देखें ! हां, वह हाथमे चलानेका पहिया जो हमारे पक्ष रखा है, वह किम दिन का शायेगा ? यह कहकर मैंने उन्हें शाश्वासन दिया ।

वेस्टने कहा- “पर उस पहियेको चलानेवाले अादमी हमारे पास कहां हैं ? हम लोग जितने हैं उनसे यह नहीं चल सकता है उसे चलानेके लिए बारी-बारीसे चार-चार भादमियोंकी जरूरत है । और इधर हम लोग थक भी । चुके हैं।" बट्टई लोगोंका काम अभी पूरा नहीं हुआ था, इससे वे लो अभी छापेखाने ही सो रहे थे। उनकी तरफ इशारा करके मैंने कहा--- "ये मिस्त्री लौग मौजूद हैं। इनकी मदद क्यों न लें ? और भाजकी रातभर हम सब जागकर छापनेकी कोशिश करेंगे । बस इतना ही कर्तव्य हमारा और बाकी रह जाता है ।