पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१५
अध्याय ५ : हाई-स्कूल में

मेरा अध्ययन चलता रहा। हाईस्कूलमें मैं बुद्धू नहीं माना जाता था। शिक्षकोंका प्रेम हमेशा संपादन करता रहा। हर साल मां-बाप को विद्यार्थीकी पढ़ाई तथा चाल-चलनेके संबंधमें स्कूलसे प्रमाण-पत्र भेजे जाते। उनमें किसी बार मेरी पढ़ाई या चाल-चलनकी शिकायत नहीं की गई। दूसरे दरजेके बाद तो इनाम भी पाये और पांचवें तथा छठे दरजेमें तो क्रमशः ४) और १०) मासिककी छात्रवृत्तियां भी मिली थीं। छात्र-वृत्ति मिलनेमें मेरी योग्यताकी अपेक्षा तकदीरने ज्यादा मदद की। छात्रवृतियां सब लड़कोंके लिए नहीं थीं, सिर्फ सोरठ प्रांतके विद्यार्थियोंके लिए ही थीं और उस समय चालीस-पचास विद्यार्थियोंकी कक्षामें सोरठ-प्रांतके विद्यार्थी बहुत नहीं हो सकते थे।

अपनी तरफसे तो मुझे याद पड़ता है कि मैं अपनेको बहुत योग्य नहीं समझता था। इनाम अथवा छात्रवृति मिलती तो मुझे आश्चर्य होता; परंतु हां, अपने आचरणका मुझे बड़ा खयाल रहता था। सदाचारमें यदि चूक होती तो मुझे रोना आ जाता। यदि मुझसे कोई ऐसा काम बन पड़ता कि जिसके लिए शिक्षकको उलाहना देना पड़े, अथवा उनका ऐसा खयाल भी हो जाय, तो यह मेरे लिए असह्य हो जाता। मुझे याद है कि एक बार मैं पिटा भी था। मुझे इस बातपर तो दुःख न हुआ कि पिटा; परंतु इस बात का महादु:ख हुआ कि मैं दंडका पात्र समझा गया। मैं फूट-फूटकर रोया। यह घटना पहली अथवा दूसरी कक्षाकी है। दूसरी घटना सातवें दर्जे की है। उस समय दोराबजी एदलजी गीमी हेड-मास्टर थे। वह विद्यार्थी-प्रिय थे। क्योंकि वह सबसे नियमोंका पालन करवाते, विधिपूर्वक काम करते और काम लेते तथा पढ़ाई अच्छी करते। उन्होंने ऊंचे दरजेके विद्यार्थियोंके लिए कसरत-क्रिकेट लाजिमी कर दी थी। लेकिन मुझे उनसे अरुचि थी। लाजिमी होनेके पहले तो मैं कसरत, क्रिकेट या फुटबॉलमें कभी न जाता था। न जानेमें मेरा झेंपूपन भी एक कारण था। किंतु अब मैं देखता हूं कि कसरतको वह अरुचि मेरी भूल थी। उस समय मेरे ऐसे गलत विचार थे कि कसरत का शिक्षाके साथ कोई संबंधी नहीं। पीछे जाकर मैंने समझा कि व्यायाम अर्थात् शारीरिक शिक्षाके लिए भी विद्याध्ययनमें उतना ही स्थान होना चाहिए जितना मानसिक शिक्षाको है।

फिर भी मुझे कहना चाहिए कि कसरतमें न जाने से मुझे कोई नुकसान