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अध्याय २३ । धरहैं हैरकार और बाल-रिक्ष हमारे मनकी तरंगें है। वास्तवमें तो हुम सब एक ही परिवारों लोग हैं । अब, वेस्टका विवाह भी यहीं क्यों न मजा लू ? उस समय ब्रह्मचर्यविषयक भेरे विचार परिपक्व नहीं हुए थे। इसलिए कुंवारे मित्रों का विवाह *रा देना उन दिनों मेरा एक पेशा हो वैठा था। वे जब अपनी जन्मभूमि माता-पिता मिलने के लिए गये तो मैंने उन्हें शाह दी थी कि जहांतक हो सके विवाह करके ही लौटना; क्योंकि फिनिक्स हम सत्रका घर हो गया था और हम सब किसान बन बैठे थे, इसलिए विवाह या वंश-वृद्धि हमारे लिए भयका विषय नहीं था। | बेस्ट लेस्टरकी एक सुंदरी विवाह लाये । इल कुमारिकाके परिवार लोग लेटरके जूतेके एक बड़े कारखाने में काम करते थे । श्रीमती बेस्ट भी कुछ समयतक उस जूते के कारखानेमें काम कर चुकी थीं । उभे मैंने मुंदरी' कहा है, क्योंकि मैं उसके गुणों का पुजारी हूं, और सच्चा सौंदर्य तो मनुष्यका गुण ही होता है। वेस्ट अपनी सासको भी साथ लाये थे। यह भल’ बुढ़िया अभी जिंदा है। अपनी उद्यमशीलता और हंसमुख स्वभावते वह हम सबक शमय करती थी। इधर तो मैंने गोरे मित्रों का विवाह कराया, उधर हिंदुस्तानी मित्रोंको अपने बाल-बच्चों को बुलवा लेने के लिए उत्साहित किया । इसने फिनिक्स एक छोटा-सा गांव बन गया था । वहां पांच-सात हिंदुस्तानी-कुटुंब रहने और वृद्धि पाने लगे थे । घरमें फेरफार और बाल-शिक्षा डरबनमें जो घर बनाया था उसमें भी कितने ही फेरफार कर डाले थे । पर यहां खर्च बहुत रक्खा था; फिर भी झुकाव सादगीकी ही तरफ थर । परंतु जोहान्सबर्ग में सर्वोदयके आदर्श और विचारों ने बहुत परिवर्तन कराया । | एक बैरिस्टर में जितनी सादगी रखी जा सकती थी उतनी तो रखी ही गई थी; फिर भी कितनी ही सामग्री के बिना काम चलाना कठिन था । सच्ची सादगी तो मन की बढ़ी। हर काम हाथ करनेका शौक बढ़ा