पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३३९

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अध्याय २४ ; जुल बलया २४ जुनू बलवा घर बनाकर बैठनेके बाद जमकर एक जगह बैठना मेरे नसीबमें लिखा ही नहीं । जोहान्सबर्ग में जमने लगा था कि एक ऐसी घटना हो गई जिसकी कल्पना भी नहीं थी । समाचार अाये कि नेटलमें जुलू लगने वलवा' खड़ा कर दिया है । मुझे जुलू लोगोंसे कोई दुश्मनी नहीं थी । उन्होंने एक भी हिंदुस्तानीको नुकसान नहीं पहुंचाया था। स्वयं ‘बल' के बारेमें भी मुझे शंका थी; परंतु मैं उस समय अंग्रेजी सल्तनतको संसारके लिए कल्याणकारी मानता था । मैं हृदयसे उसका वफादार था। उसका क्षय में नहीं चाहता था। इसलिए बल-प्रयोग विषयका नीति-नीतिके विचार मुझे अपने इरादेसे रोक नहीं सकते थे । नेटलिपर श्रापत्ति आवे तो उसके पास रक्षाके लिए स्वयंसेवक-सेना थी और आपत्तिके समय उसमें जरूरतके लायक और भरती भी हो सकती थी । मैंने अङ्गारोंमें दहा कि स्वयंसेवक-सेना इस 'बल'को शांत करने के लिए चल पड थी । । मैं अपनेको नेटल मानता था और नेलके सुथ में निकट संबंध था ही' ! इसलिए मैंने वहां के गवर्नरको पत्र लिखा कि यदि जरूरत हो तो मैं घायलों की सेवा-शुश्रूषा करने के लिए हिंदुस्तानियों की एक टुकड़ी लेकर जाने को तैयार हूं । गवर्नरने तुरंत ही इसको स्वीकार कर लिया। मैंने अनुकूल उतर अथवा इतनी जल्दी उतर आ जानेकी याशा नहीं की थी। फिर भी यह पत्र लिखने के पहले मैंने अपना इंतजाम कर ही लिया था कि यदि गवर्नर हमारे प्रस्तावको स्वीकार कर ले तो जोहान्सबर्गका घर तोड़ दें । पोलक एक अलग छोटा घर लेकर रहें और करदाई फिनिक्स जाकर रहें । कस्तूरबाई इन योजना पूर्ण सहमत हुईं। ऐसे कामोंमें उसकी तरफसे कभी कोई रुकावट आने का स्मरण मुझे नहीं होता। गवर्नरका जबाद आते ही मैंने मकान-मालिकको घर खाली करनेका एक महीने का बाकायदा नोटिस दे दिया। कुछ सामान फिनिक्स गया और कुछ बोलकके पास रह गया !