पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३४१

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अध्याय ३५ : हृदय-मंथन् ३२१ पाठक यह न समझ लें कि ये लोग पेशेवर सैनिक थे । कल बालीका येशा था वकालत । कर्नल स्पाक्स कसाईखानेके एक प्रसिद्ध मालिक थे। जनरल मैकेंजी नेटालके एक मशहूर किसान थे । ये सत्र स्वयं-सेवक थे और स्वयंसेवक के रूपमें ही उन्होंने सैनिक शिक्षा और अनुभव प्राप्त किया था । जिने रोगियोंकी शुश्रूषाका काम हुने सौंपा गया था, वे लड़ाईमें घायल लोग न थे। उनमें एक हिस्सा तो था उन कैदियोंका जो इहपर पकड़े गये थे। जनरलने उन्हें कोड़े मारनेकी सजा दी थी। इससे उन्हें जख्म पड़ गये थे और उनका इलाज न होनेके कारण पक गये थे। दूसरा हिस्सा था उन लोगोंका, जो जुलू-मित्र कहलाते थे ! ये मित्रतादर्शक चिह्न पहने हुए थे । फिर भी इन्हें सिपाहियोंने भूलसे जख्मी कर दिया था । इसके उपरांत खुद मुझे गोरे सिपाहियों के लिए देवा लानेका और उन्हें दवा देने का काम सौंपा गया था । पाठकोंको याद होगा कि डाक्टर बूथके छोटेसे अस्पतालमें मैंने एक सालतक इसकी तालीम हासिल की थी । इसलिए यहां मुझे दिक्कत न पड़ी। इसकी बदौलत वहुतेरे गोरोसे मेरा परिचय हो गया । परंतु युद्ध-थलपर गई हुई सैन एक ही जगह नहीं पड़ी रहती । जहांजहांसे खतरे समाचार अाते वहीं जा दौड़ती। उनमें बहुतेरे तो घुड़सवार थे। | हमारी फौज अपने पड़ावसे चली। उसके पीछे-पीछे में भी डोलियां कंधोंपर रखकर चलना या । दो-तीन बार तो एक दिन में चालीस मीलतक चलने का प्रसंग आ गया था। यहां भी हमें तो बस वही प्रभुका काम मिला । जो जुलू-मित्र भूलसे घायल हो गये थे उन्हें डोलियोंमें उठाकर पड़ावपर लेजाना था और वहां उनकी सेवा-शुश्रूषा करनी थी । २५ हृदय-मंथन जुलू-विद्रोह में मुझे बहुतेरे अनुभव हुए और विचार करनेकी बहुत . सामग्री मिली । बोअर-संग्राममें युद्धकी भयंकरता मुझे उतनी नहीं मालूम हुई जितनी इस बार। यह लड़ाई नहीं, मनुष्यका शिकार था । अकेले मेरा ही नहीं,