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জাম-থা: ক ৪ बल्कि दूसरे अंग्रेजोंका भी यही खयाल था । सुबह होते ही हमें सैनिकोंकी गोलेबारीकी झावाज पटाखेकी तरह सुनाई पड़ती, जौ गांवोंमें जाकर गोलियां झाड़ते । इन शब्दोंको सुना और ऐसी स्थितिमें रहना मुझे बहुत बुरा मालूम हुआ । परंतु मैं इस कदुई बूंदको पीकर रह गया और ईश्वर-कृपासे काम भी जो मुझे मिल वह भी जुलू लोगोंकी सेवाका ही । मैंने यह तो देख लिया था कि यदि हमने इस कामके लिए कदम बढ़ाया होता तो दूसरे कोई इसके लिए तैयार न हो । इस बातको स्मरः करके मैंने अंतरात्माको शांत किया। इस विभाग में आबादी बहुत कम थी । पहाड़ों और कंदराओंमें भले, मादे और जंगली कहलाने वाले जुलू लोगोंके कूबों (झोंपड़े) के सिवा वहां कुछ नहीं था। इससे वहांका दश्य बड़ा भव्य दिखाई पड़ता था। भीलोंतक जब हम बिना बस्तीके प्रदेशमें लगातार किसी घायलको लेकर अथवा खाली हाथ मंजिल तथ करते तब मेरा मन तरह-तरहके विचारोंमें डूब जाता ।। यहां ब्रह्मचर्य-विषयक मेरे विचार परिपक्व हुए । अपने साथियों साथ भी मैंने उसकी चर्चा की। हां, यह बात अभी भन्ने स्पष्ट नहीं दिखाई देती थी कि ईश्वर-इनके लिए ब्रह्मचर्य अनिवार्य है। परंतु यह बात मैं अच्छी तरह जान गया कि सेवाके लिए उसकी बहुत आवश्यकता है। मैं जानता था कि इस प्रकारकी सेवाएं मुझे दिन-दिन अधिकाधिक करनी पड़े और यदि मैं भोगविलास, प्रजोत्पत्ति, और संतति-पालनमें लगा रहा तो मैं पूरी तरह सेवा न कर सकेंगा । मैं दो घोड़ोंपर सबारी नहीं कर सकता है। यदि पत्नी इस समय गर्भवती होती तो मैं निश्चित होकर आज इस सेवा-कार्यमें नहीं कूद सकता था। यदि ब्रह्मचर्य का पालन न किया जाय तो कुटुंब-वृद्धि मनुष्यके उस प्रयत्नकी विरोधक हो जाय, जो उसे समाजके अभ्युदयके लिए करना चाहिए; पर यदि विवाहित होकर भी ब्रह्मचर्यका पालन हो सके तो कुटुंब-सेवा समाज-सेवाकी विरोधक नहीं हो सकती। मैं इन विचारोंके भंवरमें पड़ गया और ब्रह्मचर्यका व्रत ले लेनेके लिए कुछ अधीर हो उठा। इन विचारोंसे मुझे एक प्रकारका आनंद हुआ और मेरा उत्साह बढ़ा । इस समय कल्पनाने मेरे सामने सेवाका क्षेत्र बहुत विशाल कर दिया था । .. ये विचार अभी मैं अपने मदमें ढ़ रहा था और शरीरको कस ही रहा था