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अध्याय ५ : हाई स्कूलमें


जन्मे और पढ़े नवयुवकोंके मोतीकी तरह अक्षर देखे तब तो बहुत लजाया और पछताया। मैंने देखा कि बेडौल अक्षर होना अधूरी शिक्षाकी निशानी है। अतः मैंने पीछेसे अपना खत सुधारनेकी कोशिश भी की, परंतु पक्के घड़ेपर कहीं मिट्टी चढ़ सकती है? जवानीमें जिस बातकी अवहेलना मैंने की उसे मैं फिर आजतक न सुधार सका। अतः हरेक नवयुवक और युवती मेरे इस उदाहरणको देखकर चेते और समझें कि सुलेख शिक्षा का एक आवश्यक अंग है। सुलेखके लिए चित्रकला आवश्यक है। मेरी तो यह राय बनी हैं कि बालकोंकोे आलेखन कला पहले सिखानी चाहिए। जिस प्रकार पक्षियों और वस्तुओं आदिको देखकर बालक उन्हें याद रखता है और आसानीसे पहचान लेता है उसी प्रकार अक्षरोंको भी पहचानने लगता है और जब आलेखन या चित्रकला सीखकर चित्र इत्यादि निकालना सीख जाता है तब यदि अक्षर लिखना सीखे तो उसके अक्षर छापेकी तरह हो जावें।

इस समयके मेरे विद्यार्थी-जीवन की दो बातें लिखने जैसी हैं। विवाहके बदौलत जो मेरा एक साल छूट गया था उसकी कसर दूसरी कक्षामें पूरी करानेकी प्रेरणा मास्टर साहबने की। परिश्रम विद्यार्थियों को ऐसा करनेकी इजाजत उन दिनों तो मिलती थी। अतएव मैं छः महीने तीसरे दरजे में रहा और गर्मियोंकी छुट्टी के पहलेवाली परीक्षाके बाद चौथे दरजेमें चढ़ा दिया। इस कक्षा से कुछ विषयोंकी शिक्षा अंग्रेजीमें दी जाती है, पर अंग्रेजी में कुछ न समझ पाता। भूमिति-रेखागणित भी चौथे दरजेसे शुरू होता है। एक तो मैं उसमें कमजोर था, और फिर समझमें भी कुछ न आता था। भूमिति-शिक्षक पढ़ानेमें तो अच्छे थे, पर मेरी कुछ समझ हीमें न आता था। इससे मैं बहुत बार निराश हो जाता। कभी-कभी यह भी दिलमें आता कि दो दरजोंकी पढ़ाई एक साल में करनेसे तो अच्छा हो कि मैं तीसरी कक्षामें ही फिर चला जाऊं। पर ऐसा करनेसे मेरी बात बिगड़ती और जिस शिक्षकने मेरी मेहनतपर विश्वास रखकर दरजा चढ़ानेकी सिफारिश की थी उनकी भी बात बिगड़ती। इस भयसे नीचे उतरनेका विचार तो बंद ही रखना पड़ा। आखिर परिश्रम करते-करते जब 'युक्लिड' के तेरहवें प्रमेयतक पहुंचा तब मुझे एकाएक लगा कि भूमिति तो सबसे सहज विषय है। जिस बातमें केवल बुद्धिका सीधा और सरल उपयोग ही करना है उसमें मुश्किल क्या है? उसके बाद से भूमिति मेरे लिए बड़ा सहज और रोचक विषय हो गया।