पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३५०

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आत्म-कथा : भY ४ 1: तो क्या आपका यह मतलब है कि मैं पत्नीको अभी ले जा ?? 4 में कहां कहता हूं कि ले जाओ । मैं तो यह कहता हूं कि मुझपर कोई शर्त न लादो तो हम दोनोंसे इनकी जितनी सेवा हो सकेगी करेंगे और आप आरामसे जाइए। जो यह सीधी-सी बात समझमें न आती हो तो मुझे मजबूरीसे कहना होगा कि आप अपनी पत्नीको मेरे धरसे ले जाइए।" मेरा खयाल है कि मेरा एक लड़का उस समय मेरे साथ था । उससे मैंने पूछा तो उसने कहा--- "हां, आपका कहना ठीक है । बा को मांस कैसे दे सकते हैं ? फिर मैं कस्तूरबाईके पास गया । वह बहुत कमजोर हो गई थी । उससे कुछ भी पूछना मेरे लिए-दुःखदायी था। पर अपना धर्म समझकर मैने ऊपर बातचीत उसे थोड़े में समझा दी। उसने दृढ़तापूर्वक जवाब दिया--- “मैं मांसका शोरबा नहीं लेंगी । यह मनुष्य-देह बार-बार नहीं मिला करती । आपकी गोदी मैं मर जाऊं तो परवाह नहीं; पर अपनी देहको मैं भ्रष्ट नहीं होने देंगी ।” मैंने उसे बहुतेरा समझाया और कहा कि तुम मेरे विचारोंके अनुसार, चलनेके लिए बाध्य नहीं हो । मैने उसे यह भी बता दिया कि कितने ही अपने परिचित हिंदू भी दबाके लिए शराब और मांस लेने परहेज नहीं करते । पर वह अपनी बातसे बिलकुल न डिगी और मुझसे कहा-- “मुझे यहांसे ले चलो।".. यह देखकर में बड़ा खुश हुआ। किंतु ले जाते हुए बड़ी चिंता हुई । .. पर मैंने तो निश्चय कर ही डाला और डाक्टरको भी पत्नीका निश्चय' सुना दिया है : | वह बिगड़कर बोले---- “आप तो बड़े घातक पति मालूम होते हैं । ऐसी नाजुक हालत उस बेबारीसे ऐसी बात करते हुए आपको शरम नहीं मालूम हुई ? मैं कहता हूं कि आपकी पत्नीकी हालत यहांसे ले जानेके लायक नहीं हैं। उनके शरीर की हालत ऐसी नहीं है कि जरा भी धक्का सहन कर सके। रास्ते ही दम निकल जाय तो ताज्जुब नहीं । फिर भी आप हठ-धर्मसि न माने तो आप जाने । यदि शोरबा न देने में तो एक रात भी उन्हें मेरे घर में रखनेकी' जोखिम में नहीं लेता ।" रिमझिम-रिमझिम में बरस रहा था। स्टेशन दूर था । डरबनसे. फिनिक्सतक रेल रास्ते और फिनिक्ससे लगभग ढाई मीलतक पैदल जाना था ।