पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३५३

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अध्याय २९ : घरमें सत्याग्रह किया जाय तो वह बहुत उपयोगी हो सकता है । अतएव जेल से निकलनेके बाद मैने तुरंत इन बातोंका पालन शद कर दिया। जहांतक हो सके चाय पीना बंद कर दिया और शामके पहले भोजन करनेकी अदित डाली, जो आज स्वाभाविक हो बैठी हैं । परंतु ऐसी भी एक घटना घटी, जिसकी बदौलत मैंने जनक भी छोड़ दिया था । वह क्रम लगभग दस बरसतक नियमित रूपले जारी रहा। अन्नाहारसंबंधी कुछ पुस्तकों में मैंने पढ़ा था कि मनुष्यके लिए नमक खाना आवश्यक नहीं है। जो नमक नहीं खाता है आरोग्यकी दृष्टि उसे लाभ ही होता है और मेरी तो यह भी कल्पना दौड़ गई थी कि ब्रह्मचारीको भी उससे लाभ होगा ! जिसका शरीर निर्बल हो उसे दाल न खानी चाहिए, यह मैंने पढ़ा था और अनुभव भी किया था। परंतु में उसी समय उन्हें छोड़ न सका था; क्योंकि दोनों चीजें मुझे प्रिय थीं ।। नश्तर लगाने के बाद यद्यपि कस्तूरबाईक रक्तस्त्राचे कुछ समयके लिए बंद हो गया था, तथापि अदको वह फिर जारी हो गया । अबकी बह किती तरह मिटाये ३ मिटा । पानीके इलाज बेकार साबित हुए। मेरे इन उपचारोंपर पत्नी की बहुत श्रद्धा न थी; पर साथ ही तिरस्कार भी न था। दूसरा इलाज करने का भी उसे अाग्रह न था; इसलिए जब मेरे दूसरे उपचारोंमें लता न मिनी तब मैंने उसको समझाया कि दाल और नमक छोड़ दो। मैंने उसे समझानेकी हद कर दी, अपनी बातके समर्थनमें कुछ साहित्य भी पढ़कर सुनाया, पर वह नहीं मानती थी ! अँतको उसने झुंझलाकर कहा--- "दाल और नमक छोड़नेके लिए तो आपसे भी कोई कहे तो आप भी न छोड़ेंगे ।” इस जवाबको सुनकर, एक ओर जहां मुझे दुःख हुए तहां दूसरी और हर्ष भी हुआ; क्योंकि इससे मुझे अपने प्रेमको परिचय देनेका अवसर मिला। उस र्ष से मैंने तुरंत कहा, “तुम्हारा खयाल गलत है, मैं यदि बीमार होऊं और मुझे यदि वैद्य इन चीजोंको छोड़नेके लिए कहें तो जरूर छोड़ दू । पर ऐसा क्यों ? लो, तुम्हारे लिए मैं आज हीसे दाल और नमक एक सालतक छोड़ देता हूं । तुम छोड़ो या न छोड़ो, मैंने तो छोड़ दिया ।" यह देखकर पत्नीको बड़ा पश्चात्ताप हुआ। वह कह उठी----"माफ़