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आत्म-कथा : भाग ४

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-कई : भार ४ माना थिन बर्ण है । उता दूरे अन्य का यह ह ४ प्रभंगपर दाजुत्ता विचार करने योग्य -- অজস্ব বন্দি দিয়ে খ্রি:।। হংকা ? ঘ হাতি। उपवाली के विषय { कि ) शमन हो जाते हैं; परंतु उनका र नहीं जाता। रस त श्र दशन से ही-ईश्वर प्रसादसे ही इसन होते हैं। इससे हम इस नतीजेपर ये कि उस दि मकै भगक एक सावके रूप झाश्यक है; परंतु ही कुछ नहीं है। और यदि शारीरिक उपवार साथ मनः उपवास न हो तो की परिणति में हो सकती है और ब्लू हानिकारक साबित हो सकती है । ट' हा सत्याग्रहके इतिहास जो बात नहीं आ सकी अथवा अांशिक रूपमें आई है वही इन अध्याय लिखी जा रही है। इस वातको पाठक याद रखेंगे तो इन अध्यायका पूर्वापर संबंध ये समझ सकेंगे । टॉलस्टाय-प्राश्रये लड़कों और लड़कियों के लिए कुछ शिक्षण-प्रबंध अवश्य था । मेरे साथ हिंदू, मुसलमान, पारसी और ईई नवयुवक थे, औ६ कुछ हिंदू लड़कियां भी थीं । इनके लिए डाल शिक्षक रखना असंभव था और नुको शव भी मालूम हुआ । असंभव तो इसलिए था कि सुयोग्य हिंदुस्तानी शिक्षकों का व्हां अभाब था, और मिले भी तो का ये बिना इनसे २१ मत र न्वा ने लगा ? रे पास रुपयोंकी बहुतायत नहीं की और वाहनसे शिक्षक जुलर अलावश्यक छान; क्योंकि वर्तमान शिक्षा-प्रणाली मुझे पसंद न ई और बाविक पद्धति क्या है, इसका मैंने अनुभव नहीं कर देखा था । इतना जानता था कि आदर्श स्थिति सच्ची शिक्षा क्षा-दिन देलरेखमें ही मिल सकती है। शादर्श स्थिति बाह्य सहायता कम-से-कम होनी । चाहिए। टॉल्स्टाय-श्रम एक कुटुंब था और में उसमें पिताके स्थानपर था।