पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३६४

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अध्याय ३५ : अच्छे-बुरेका मेल ३४५ इस प्रकार रूल मानेका पश्चात्ताप आजतक होता रहता है ।। मैं समझता है कि उसे पीटकर मैंने उसे अपनी आत्मा की सात्विकता का नहीं, बल्कि अपने पशुताका दर्शन कराया था ।। मैंने बच्चों को पीट-पीकर लिखने का हमेशा विरोध किया है। सारी जिदगी एक ही अवसर मुझे याद पड़ता है जब मैंने अपने एक न्नड़केको पीटा शः । मेरा बह ल मार देना उचित था । इहीं, इस निर्णय | भाजत नहीं कर सका । इस दंडके श्रौचित्यके विजय अत्र भी मुझे संदेह है; क्योंकि उसके मूल में क्रोध भरा हुआ था और भने सजा देने आई था । यदि उसे केवल मेरे दुःखका ही प्रदर्शन होता तो मैं उस दंड उचित समझता; परंतु उसमें निती-जुली भावनाएं थीं । इस वदनाके बाद तो में विद्यार्थियों को सुधारने की और भी अच्छी तरकीब जान गया । यदि इस मौकेर उस झलाने काम लिया होता तो क्या फल निकलता, यह में नहीं कह सकत । बह् शुक तो इस बातको उसी समय भूल गया } में नहीं कह सकता कि वह बहुत सुधर गया हो; परंतु इस प्रसंगने मेरे इन विचारोंको वहुत गति दे दी कि विद्यार्थी के प्रति शिक्षकका क्या धर्म है । उसके बाद भी युवकले ऐसा ही कसूर हुअा है; परंतु मैंने नीतिका प्रयोग कभी नहीं किया। इस तरह अात्मिक ज्ञान देनेका प्रयत्न करते हुए मैं खुद अात्माके गुणको अधिक जान सका । अच्छा मेल टॉस्टय-श्रममें मि० केलनबेकने मेरे सामने एक प्रश्न खड़ा कर दिया था। इसके पहले मैंने उसपर कभी विचार नहीं किया था । आममें कितने ही लड़के बड़े ऊधमी और वाहियात थे, कई बार भी थे । उन्हींके साथ भेरे तीन लड़के रहते थे । दूसरे लड़के भी थे, जिनका कि लालन-पालन मेरे लड़कों की तरह हुआ था; परंतु मि केलनकका ध्यान तो इस बात के तरफ था कि वे आवारा लड़के और मेरे लड़के एक साथ इस तरह नहीं रह सकते। एक दिन उन्होंने कहा---- “आपका यह सिलसिला मुझे बिलकुल ठीक नहीं मालूम