पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३६६

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 बालक और जालिकाएं एक साथ रहते ओर पढ़ते हों, वहां मां-बापकी श्रौर शिक्षककी

कड़ी जांच हो जाती हैं । उन्हें वहुत सावधान और जागरूक रहना पड़ता है ।

इस तरह लड़के-लड़कियोंको सच्चाई और ईमानदारीके साथ परवरिश करन और पढ़ाने-लिखाने में कितनी और कैसी कठिनाइयां हैं, इसका अनुभव दिन-दिल बढ़ता गया । शिक्षक और पालककी हैसियतले मुझे उनके हृदयोंमें प्रवेश करना था । उनके सुख-दुखमें हाथ बंटाना था । उनके जीवनकी गुत्थियां सुलझानी थीं । उनकी चढ़ती जवानीकी तरंगोंको सीधे रास्ते ले जाना था। कितने ही कैदियोंके छुट जानेके बाद टॉल्स्टाय-प्राश्रममें थोड़े ही लोग रह गये । ये खासकरके फिनिक्स-वासी थे । इसलिए में श्राश्रमको फिनिक्स ले गया ! फिनिक्समें मेरी कड़ी परीक्षा हुई । इन बचे हुए प्राश्रम-बासियोंको टॉल्स्टाय-श्राश्रमसे फिनिक्स-पहुंचाकर मैं जोहान्सबर्ग गया । थोड़े ही दिन जोहान्सवर्ग रहा होऊंगा कि मुझे दो व्यक्तियोंके भयंकर पतनके समाचार मिले । सत्याग्रह जैसे महान् संग्राममें यदि कहीं भी असफलता जैसा कुछ दिखाई देता तो उससे मेरे दिलको चोट नहीं पहुंचती थी, परंतु इस घटनाने तो मुझपर वज्र-प्रहार ही कर दिया ! मेरे दिलमें घाव हो गया ! उसी दिन मैं फिनिक्स रवाना हो गया । भि० केलनबेकने मेरे साथ प्रालेकी जिद पकड़ी । वह मेरी दयनीय स्थितिको समझ गये थे; उन्होंने साफ इन्कार कर दिया कि मैं औपको अकेला नहीं जाने ढूंगा । इस पतनकी खबर मुझे उन्हींके द्वारा मिली थी । रास्तेमें ही मैंने सोच लिया, अथवा यों कहूं कि मैंने ऐसा मान लिया कि इस झबस्थामें मेरा धर्म क्या हैं ? मेरे भनने कहा कि जो लोग हमारी रक्षामें हैं उनके पतनके लिए पालक या शिक्षक किसी-न-किसी अंशमें जरूर जिम्मेदार हैं और इस दुटिलाके संबंधमें तो गुझे अपनी जिम्मेदारी साफ-साफ दिखाई दी । मेरी पत्नीन मुझे पहले ही चेताया था; पर मै स्वभावतः विश्बासशील हूं, इससे मैंने उसकी चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया था । फिर मुझे यह भी प्रतीत हुग्रा कि