पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय ३७ : गोखलेले मिलने मालूम हुआ था। उस समय मैं रामनामका पूरा चमत्कार नहीं समझा था । इसलिए दुःख सहन करनेकी सामर्थ्य कम थी । उपवासके दिनोंमें जिस किसी तरह भी हो पानी खूब पीना चाहिए। इस बाह्य कलाका ज्ञान मुझे न था । इस कारण भी यह उपवास मेरे लिए भारी हुए । फिर पहलेके उपवास सुखशांतिसे बीते थे, इसलिए चौदह उपवासके समय कुछ लापरवाह भी रहा था । पहले उपवास समय हमेशा कूतेके कटि-स्नान करता; चौदह उपवासके समय दो-तीन दिन बाद में बंद कर दिये गये । कुछ ऐसा हो गया था कि पानीका स्वाद ही अच्छा नहीं मालूम होता था, और पानी पीते ही जी मिचलाने लगता था, जिससे पानी बहुत कम पिया जाता था। इससे गला सूख गया, शरीर क्षीण हो गया और अंतके दिनोंमें बहुत धीमे बोल सकता था। इतना होते हुए भी लिखनेलिखानेका अावश्यक काम में आखिरी दिनतक कर सका था और रामायण इत्यादि अंततक' सुनता था । कुछ प्रश्नों और विषयोंपर राय इत्यादि देनेका आवश्यक कार्य भी कर सकता था । गोरखले मिलने यहां दक्षिण अफ्रीकाके कितने ही संस्मरण छोड़ देने पड़ते हैं। १९१४. ई० में जब सत्याग्रह-संग्रामका अंत हुआ तव गोखलेकी इच्छासे मैंने इंग्लैंड होकर देश आने का विचार किया था। इसलिए जुलाई महीनेमें कस्तूरबाई, केलनब्रेक और मैं तीनों विलायतके लिए रवाना हुए । सत्याग्रह-संग्रामके दिनों में मैंने लमें तीसरे दर्जे में सफर शुरू कर दिया था। इस कारण जहाजमें भी तीसरे दर्जे के ही टिकट खरीदे, परंतु स तीसरे दर्जे में और हमारे तीसरे दर्जे में बहुत अंतर हैं । झरे यहां तो सोने-बैठने की जगह भी मुश्किल से मिलती है और सफाईकी तो बात ही क्या पूछना ! किंतु इसके विपरीत यहांके जहाजोंमें जगह काफी रहती थी और सफाईका भी अच्छा खयाल रखा जाता था। कंपनीने हमारे लिए कुछ और भी सुविधाएं कर दी थीं । कोई हमको दिक न करने पाये, इस बुयाल एक पाखानेमें ताला लगाकर उसकी ताली हमें सौंप दी गई थी; और