पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३७६

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अध्याय ४० ; सत्याग्रहकी चकमक करनेकी नौबत आ गई । मैं लिख चुका हूं कि जब हमारे नाम मंजूर हो गये और लिखे जा चुके तब हमें पूरी कवायद सिखानेके लिए एक अधिकारी नियुक्त किया गया । म सबकी यह समझ थी कि यह अधिकारी महज युद्धकी तालीम देने के लिए हमारे मुखिया थे, शेष सब बातों में टुकड़ीका मुखिया मैं था। मेरे साथियों के प्रति मेरी जवाबदेही थी और उनकी मेरे प्रति । अर्थात् हम लोगों का खयाल था कि उस अधिकारीको सारा काम मेरी मार्फत लेना चाहिए। परंतु जिस तरह ‘पुतके पांव पालनेमें ही नजर आ जाते हैं उसी तरह उस अधिकारीकी अांख हमें पहले ही दिन कुछ और ही दिखाई दी। सोराबजी' बहुत होशियार अदमी थे। उन्होंने मुझे चेताया, “भाई साहब, सम्हल कर रहना । यह आदमी तो मालूम होता हैं। अपनी जहांगी चलाना चाहता है । हमें उसका हुक्म उठाने की जरूरत नहीं है । हम उसे अपना एक शिक्षक समझते हैं। पर जो यह नौजवान आये हैं वे तो हमपर हुकम चलने लाये हैं ऐसा में देखता हूँ।" यह नवयुवक अक्सफोर्डके विद्यार्थी थे और हमें सिखानेके लिए आये थे। उन्हें बड़े अफसरले हमारे ऊपर नायब अफसर मुकर्रर किया था। मैं भी सोराबजीकी बताई बात देख चुका था । मैंने सोराबजी को तसल्ली दिलाई और कहा- कुछ फिकर मत करो।” परंतु सोराबजी ऐसे आदमी नहीं थे, जो झट मान जाते । “आप तो हैं भोले-भंडारी । ये लोग मीठी-मीठी बातें बनाकर अपको धोखा देंगे और जब आपकी आंखें खुलेगी तब कहोगे--- चलो, अ सत्याग्रह करो।' और फिर आप हमें परेशान करेंगे।" सोराबजीने हंसते हुए कहा । मैंने जवाब दिया-- “ मेरा साथ करनेमें सिदा परेशानीके और क्या अनुभव हुआ है ? और सत्याग्रहीका जन्म तो धोखा खानेके लिए ही हुआ है। इसलिए परवा नहीं, अगर ये साहब मुझे धोखा दे दें। मैंने उसे बीसों बार नहीं कहा है कि अंतको वही धोखा खाता है, जो दूसरोंको धोखा देता है ? " | यह सुनकर सोराबजीने कहकहा लगाया--- " तो अच्छी बात है। लो, धोखा खाया करो। इस तरह किसी दिन सत्याग्नहमें मर मिटोगे और साथ-साथ हमको भी ले डूबोगे ।” | इन शब्दोंको लिखते हुए मुझे स्वर्गीय मिस हाबहाउसके असहयोगके