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पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३७८

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अध्याय ४० : सत्याग्रहको चकमक मुझे उनका प्रतिनिधि मंजूर करना चाहिए। मैंने अपने पास आई शिकायतें भी पेश कीं-- “नायब अफसर हमारी टुकड़ीसे बिना पूछे ही मुकर किये गये हैं और उनके व्यवहारसे हमारे अंदर बहुत असंतोष फैल गया है। इसलिए उनको वहांसे हटा दिया जाय और हमारी टुकड़ीको अपना मुखिया चुननेका अधिकार दिया जाय। पर यह बात उनको जंची नहीं। उन्होंने मुझसे कहा कि टुकड़ीका अपने अफसरोंको चुनना ही फौजी कानूनके खिलाफ है और यदि उस अफसरको हटा दिया जाय तो टुकड़ीमें अज्ञा-पालनका नाम-निशान न रह जायगा ।। | इसपर हमने अपनी टुकड़ीकी सभा की और उसमें सत्याग्रहके गंभीर परिणामों की ओर सबका ध्यान दिलाया। लगभग सबने सत्याग्रहकी' सौगंध खाई। हमारी सभाने प्रस्ताव किया कि यदि ये वर्तमान अफसर नहीं हटायें गये और टुकड़ी को अपना मुखिया पसंद न करने दिया गया तो हमारी टुकड़ी कवायदमें और केपमें जाना बंद कर देगी । अब मैंने अफसरको एक पत्र लिखकर उसमें उनके रवैयेपर अपना घोर असंतोष प्रकट किया और कहा कि मुझे अधिकारकी जरूरत नहीं है। मैं तो केवल सेवा करके इस कामको सांगोपांग पूरा करना चाहता हूं। मैंने उन्हें यह भी बताया कि बोझर-संग्राममें मैंने कभी अधिकार नहीं पाया था। फिर भी कर्नल गेलवे और हमारी टुकड़ीमें कभी झगड़ेका मौका नहीं आया था और वह मेरे द्वारा ही मेरी टुकड़ीकी इच्छा जानकर सर्व काम करते थे। इस पत्रके साथ उस प्रस्तावकी नकल भी भेज दी थी । । किंतु उस अफसरपर इसका कुछ भी असर न हुआ ! उसका तो उलटा यह खयाल हुआ कि सभा करके हमारी टुकड़ीने जो यह प्रस्ताव पास किया है, दह भी सैनिक नियम और मर्यादाका भारी उल्लंघन था । उसके बाद भारत-मंत्रीको मैंने एक पत्रमें ये सब बातें लिख दीं और हमारी सभाका प्रस्ताव भी उनके पास भेज दिया । | भारत-मंत्री ने मुझे उत्तरमें सूचित किया कि दक्षिण अफ्रीका की हालत इसरी थी। यहां तो टुकड़ीके बड़े अफसरको नायब अफसर भुकर्रर करनेका इक है । फिर भी भबिष्यमें वे अफसर अापकी सिफारिशोंपर ध्यान दिया करेंगे ।