पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय ४१ : शीयलेकी उदारता | अब मैं बीमार हुआ था तब मेरी बीमारी भी हमारी चर्चाको एक विषय हो गई थी । भेरे भोजनके प्रयोग तो उस समय भी चल ही रहे थे। उस समय मैं मूंगफली, कच्चे और पक्के केले, नीबू, जैतुनको तेल, टमाटर, अंगूर इत्यादि चीजें खाता था । दुध, अनाज, दाल वगैरा चीजें बिलकुल न लेता था। मेरी देखभालजीवराज मेहता करते थे। उन्होंने मुझे दूध और अनाज लेनेपर बड़ा जोर दिया। इसकी शिकायत ठेठ गोखलेतक पहुंची । फुलाहार-संबंधी मेरी दलीलोंके वह बहुत कायल न थे । तंदुरुस्तीकी हिफाजतके लिए डॉक्टर जो-जो बतावे वह लेना चाहिए, यही उनका मत था । | गोखलेके आग्रहको न मानना मेरे लिए बहुत कठिन बात थी । जब उन्होंने बहुत ही जोर दिया तब मैंने उनसे २४ घंटेतक विचार करने की इजाजत मांगी । केलनबेक और मैं घर आये। रास्ते मैंने उनके साथ चर्चा की कि इस समय मेरा क्या धर्म है। मेरे प्रयोगों वह मेरे साथ थे। उन्हें यह प्रयोग पसंद भी था। परंतु उनका रुख इस बातकी तरफ था कि यदि स्वास्थ्यके लिए मैं इस प्रयोगको छोड़ दें तो ठीक होगा। इसलिए अब अपनी अंतरात्माकी श्रावाजका फैसला लेना ही बाकी रह गया था । | सारी रात में विचारमें डूबा रहा। अब यदि मैं अपना सारा प्रयोग छोड़ दू तो मेरे सारे विचार और मंतव्य धूलमें मिल जाते थे। फिर उन विचारोंमें मुझे कहीं भी भूल न मालूम होती थी। इसलिए प्रश्न यह था कि किस अंशतक गोखले प्रेमके अधीन होना मेरा धर्म हैं, अथवा शरीर-रक्षाके लिए ऐसे प्रयोग किस तरह छोड़ देना चाहिए। अंतको मैंने यह निश्चय किया कि धार्मिक दृष्टि से प्रयोगका जितना अंश आवश्यक है उतना रक्खा जाय और शेष बातोंमें डाक्टरकी आज्ञाका पालन किया जाय । मेरे दूध त्यागनेमें धर्म-भावनाकी प्रधानता थी । कलकतेमें गाय-भैसका दूध जिन घातक विधियों द्वारा निकाला जाता है उसका दृश्य मेरी आंखों के सामने था। फिर यह विचार भी मेरे सामने था कि मांसकी तरह पशुका दूध भी मनुष्यकी खुराक नहीं हो सकती । इसलिए दूध-त्यागका दृढ़ निश्चय करके मैं सुबह उठा। इस निश्चयसे मेरा दिल बहुत हलका हो गया था, किंतु फिर भी गोखलेका भय तो था ही। लेकिन साथ ही मुझे यह भी विश्वास था कि वह मेरे निश्चयको उलटनेका उद्योग न करेंगे।