पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

 अध्याय ४३ : बिदा ३६७ जाएँगे । तब तक यदि युद्ध जारी रहा तो उसमें मदद करने के और भी बहुत अवसर मिल जाएँगे । नहीं तो जो कुछ आपने यहाँ किया है उसे भी मैं कम नहीं समझता ।”

    मुझे उनकी यह सलाह अच्छी मालूम हुई और मैंने देश जाने की तयारी की।
                               ४३
                               बिदा

मि० केलनबेक देश जाने के निश्चय से हमारे साथ रवाना हुए थे ! विलायत में हम साथ ही रहते थे । युद्ध शुरू हो जाने के कारण जर्मन लोगों पर खूब कड़ी देखरेख थी और हम सबको इस बात पर शक था कि केलनबेक हमारे साथ आ सकेंगे या नहीं। उनके लिए पास प्राप्त करने का मैंने बहुत प्रयत्न किया । मि० राबर्टस खुद उन्हें पास दिला देने के लिए रजामंद थे । उन्होंने सारा हाल तार द्वारा वाइसरायको लिखा, परंतु लार्ड हाडिंज का सीधा और सूखा जवाब आया- “हमें अफसोस है, हम इस समय किसी तरह जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं हैं । ” हम सबने इस जवाब के औचित्य को समझा । केलनबेक के वियोग का दु:ख तो मुझे हुआ ही, परंतु मैंने देखा कि मेरी अपेक्षा से उनको ज़्यादा हुआ । यदि वह भारतवर्ष में आ सके होते तो आज एक बढ़िया किसान और बुनकर का सादा जीवन व्यतीत करते होते । अब वह दक्षिण अफ्रीका में अपना वही असली जीवन व्यतीत करते हैं और स्थपति (मकान बनानेवाले) का धंधा मज़े से कर रहे हैं ।

     हमने तीसरे दर्जे का टिकट लेने की कोशिश की; परंतु 'पी एंड ओ के जहाज़ में तीसरे दर्जे का टिकट नहीं मिलता था, इसलिए दूसरे दर्जे का लेना पड़ा । दक्षिण अफ्रीका से हम कितना ही ऐसा फलाहार साथ बाँध लाये थे जो जहाज़ों में नहीं मिल सकता । वह हमने साथ रख लिया था और दूसरी चीजें जहाज़ में मिलती ही थीं । 
     डाक्टर मेहता ने मेरे शरीर को मीड्स प्लास्टर के पट्टे से बांध दिया था और मुझे कहा था कि पट्टा बँधा रहने देना । दो दिन के बाद वह मुझे सहन न हो