पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३८५

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आस-कथा : भाइ ४ का और बड़ी मुश्किल के बाद मैंने उसे उतारा और नहान-धोने भी लगा । मुख्यतः ल और मेवेके सिवाय और कुछ नहीं खाता था। इससे तबियत दिनदिन सुधरने लगी और स्वेजकी खाड़ी में पहुंचनेतक तो अच्छी हो गई । यद्यपि इससे शरीर कमजोर हो गया था फिर भी बीमारीका भय मिट गया था । और मैं रोज धीरे-धीरे कसरत बढ़ाता गया । स्वास्थ्य में यह शुभ परिबर्तन तो मेरा यह खयाल है कि समशीतोष्ण हवाके बदौलत ही हुआ । | पुराने अनुभव अथवा और किसी कारण हो, अंग्रेज यात्रियों और हमारे अंदर जो अंतर में यहां देख पाया वह दक्षिण अफ़ीकासे झाते हुए भी नहीं देखा था। वहां भी अंतर तो था, परंतु यहाँ उसले और ही प्रकारका भेद दिखाई, दिया । किसी-किसी अंग्रेजके साथ बातचीत होती; परंतु वह भी ‘साहब-सलामत से आगे नहीं । हादिक भेंट नहीं होती थी। किंतु दक्षिण अफ्रीकाके जहाजमें और दक्षिण अफ्रीका में हादिक भेट हो सकती थी । इस भेदका कारण तो मैं यही समझा कि इधरके जहाजोंमें अंग्रेजोंके मनमें यह भाव कि हम' शासक हैं' मौर हिंदुस्तानियोंके भनमें यह भान कि हम गैरोके गुलाम हैं' जनमें यह अनजान काम कर रहा था । | ऐसे वातावरणभैंसे जल्दी छूटकर देस पहुंचने के लिए मैं अतुर हो रहा था । अदन पहुंचने पर ऐसा भास हुआ मानो थोड़े-बहुत घर आ गये हैं । अदनबालों साथ दक्षिण अफ्रीका ही हमारा अच्छा संबंध में गया था; क्योंकि भाई कैकोबाद कावसजी दीना डरबन आ गये थे और उनके तथा उनकी पत्नी के साथ मेरा अच्छा परिचय हो चुका था । थोड़े ही दिनमैं इस बंबई आ पहुंचे। जिस देश में १९०५में लौटनेकी आशा रखता था वहां १० वर्ष बाद पहुंचने मेरे मनको बड़ा आनंद हो रहा था। बंबईमें गोखलेने सभः वगैराका प्रबंध कर ही डाला था। उनकी तबियत नाजुक थी । फिर भी वह बंबई आ पहुंचे थे। उनकी मुलाकात करके उनके जीवनमें मिल जाकर अपने सिरका बोझ उतार डालनेकी उसंग मैं अंबई पहुंचा था, परंतु विधाताने कुछ और ही रचना रच रक्खी थी ! नैरे मन छ और है, कतर्फि कछु और । । ।