पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३९५

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अभि-कथा :गि ४ चुंगीके अफसरसे मिला, चौरीकी सारी बात मैंने नि:शंक होकर उनसे कहूदी, यह भी कह दिया कि “आप चाहें तो सब कागज-पत्र देख लीजिए । पारसी रुस्तमजीको इंस घटनापर बड़ा पश्चात्ताप हो रहा है ।। अफसरने कहा- "मैं इस पुराने पारसीको चाहता हूं । उस की तो यह बेवकूफी है; पर इस मामलेमें मेरा फर्ज क्या है, सो आप जानते हैं। मुझे तौ प्रधान वकीलकी आज्ञाके अनुसार करना होगा। इसलिए आप अपनी समझानेकी सारी कलाका जितना उपयोग कर सके वहां करें ।'

  • यदि पारसी रुस्तमजीको अदालतमें घसीट ले जाने पर जोर न दिया जाय तो मेरे लिए बस है ।'

इस अफसरसे अभय-दान प्राप्त करके मैने सरकारी वकीलके साथ पत्रव्यवहार शुरू किया और उनसे मिला भी । मुझे कहना चाहिए कि मेरी सत्यप्रियताको उन्होंने देख लिया और उनके सामने मैं यह सिद्ध कर सका कि मैं कोई बात उनसे छिपाता नहीं था। इस अथवा किसी दूसरे मामले में उनसे साका पड़ा तो उन्होंने मुझे यह प्रमाण-पत्र दिया था--- " मैं देखता हूं कि आप जबाबमें 'ना' तो लेना ही नहीं जानते ।" : रुस्तमजीपर मुकदमा नहीं चलाया गया । हुक्म हुआ कि जितनी चोरी पारसी रुस्तमजीने कबूल की है उसके दूने रुपये उनसे ले लिये जाये और उनपर मुकदमा न चलाया जाय । •. - रुस्तमजीने. अपनी इस चुंगी-चोरीका किस्सा लिखकर कांच में जड़ाकर अपने दफ्तरमें टांग दिया और अपने वारिसों तथा साथी व्यापारियों को ऐसा न करनेके लिए खवरदार कर दिया । रुस्तमजी सेठके व्यापारी मित्रोंने मुझे सावधान किया कि यह सच्चा वैराग्य नहीं, स्मशान बैराग्य है । पर मैं नहीं कह सकता कि इस बातमें कितनी सत्यता हो । जब मैंने यह बात रुस्तमजी' सेठ कही तो उन्होंने जवाब दिया कि श्रापको धोखा देकर मैं कहां जाऊंगा ।