पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३९८

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अध्याय २ : गोखले के साथ यूनामें तो इसमें कोई कठिनाई नहीं आवेगी ।। इस तरह बंबईमें दो-एक दिन रहकर देसका प्रारंभिक अनुभव ले गोखलेकी अज्ञासे मैं पूना गया । गोखलेके साथ पूनामें | मेरे बंबई पहुंचते ही गोखलेने मुझे तुरंत खबर दी कि बंबईके गवर्नर आपसे मिलना चाहते है और पूना अनेके पहले आप उनसे मिल आवे तो अच्छा होगा। इसलिए मैं उनसे मिलने गया । मामूली बातचीत होनेके बाद उन्होंने मुझसे कहा--- “आपसे मैं एक वचन लेना चाहता हूं। मैं यह चाहता हूं कि सरकारके संबंधमें यदि आपको कहीं कुछ आंदोलन करना हो तो उसके पहले आप मुझसे भिल लें और बातचीत कर लें ।' मैंने उत्तर दिया कि यह वचन देना मेरे लिए बहुत सरल है; क्योंकि सत्याग्रहीकी हैसियतसे मेरा यह नियम ही है कि किसी के खिलाफ कुछ करने के पहले उसका दृष्टि-बिंदु खुद उसीसे समझ लें और अपनेसे जहांतक हो सके उसके अनुकूल होनेका यत्न करू । मैंने हमेशा दक्षिण अफ्रीका में इस नियमका पालन किया है और यहां भी मैं ऐसा ही करनेका विचार करता हूं ।। " लार्ड विलिंग्डनने इसपर मुझे धन्यवाद दिया और कहा---- “आप जब कभी मिलना चाहें, मुझसे तुरंत मिल सके और अप देखेंगे कि सरकार जान-बूझकर कोई बुराई करना नहीं चाहती ।" | मैंने जवाब दिया--- " इसी विश्वासपर तो मैं जी रहा हूं ।' | अब मैं पूना पहुंचा। वहांके तमाम संस्मरण लिखना मेरी सामर्थ्यके बाहर है। गोखलेने और भारत-सेवक-समितिके सदस्योंने मुझे प्रेमसे पाग दिया। जहांतक मुझे याद है उन्होंने तमाम सदस्योंको पूना बुलाया था। सबके साथ दिल खोलकर मेरी बात हुई । गोखलेकी तीव्र इच्छा थी कि में भी समितिमें जाऊ । इधर मेरी तो इच्छा थी ही; परंतु उसके सदस्योंकी यह धारणा हुई