पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४००

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अध्याय ३ : धमकी ? उसमें वही चीजें अर्थात् फल और मेवे मंगाये थे, जो मैं खाया करता था । पार्टी उनके कमरेसे कुछ ही दूरपर थी। उनकी हालत ऐसी न थी कि वे वहांतक भी आ सकते; परंतु उनका प्रेम उन्हें कैसे रुकने देता ? वह जिद करके आये थे; परंतु उन्हें गश आ गया और वापस लौट जाना पड़ा । ऐसा गश उन्हें बार-बार आ जाया करता था, इसलिए उन्होंने कहलवाया कि पार्टीमें किसी प्रकारकी गड़बड़ न होनी चाहिए । पार्टी क्या थी, समितिके आश्रम में अतिथि-घरके पास के मैदानमें जाजम बिछाकर हम लोग बैठ गये थे और मूंगफली, खजूर वगैरा खाते हुए प्रेम-वार्ता करते थे एवं एक-दूसरेके हृदयको अधिक जाननेका उद्योग करते थे । . . । किंतु उनकी यह मूछ मेरे जीवनके लिए कोई मामूली अनुभव नहीं था । धमकी ? बंबईसे मुझे अपनी विधवा भौजाई और दूसरे कुटुंबियों से मिलने के लिए राजकोट और पोरबंदर जाना था। इसलिए मैं राजकोट गया । दक्षिण अफ्रीका सत्याग्रह-अांदोलनके सिलसिलेमें मैंने अपना पहनावा लभम गिरमिटिया मजूरकी तरह कर लिया था । विलायतमें भी यही लिबास रक्खा था । देसमें प्राकर मैं काठियावाड्का पहनावा पहनना चाहता था, दक्षिण अफ्रीकामें काठियावाड़ी कपड़े मेरे पास थे । इससे बंबईमें मैं काश्यिावाड़ी लिबासमें अर्थात् कुरता, अंगरखा, धोती और सफेद साझा पहने हुए उतर सका था। ये सब कपड़े देसी मिलके बने हुए थे। बंबईसे काठियावाड़तक तीसरे दरजे में सफर करने का निश्चय था । सो वह साफा और अंगरखा मुझे एक जंजाल मालूम हुए । इसलिए सिर्फ एक कुरता, धोती और आठ-दस नेकी कश्मीरी टोपी सार्थ रक्खे थे। ऐसे कपड़े पहननेवाला ग्राम तौरपर गरीब आदमियों में ही गिना जाता है। इस समय वीरमगाम और ववागमें, प्लेगकै कारण, तीसरे दरजेके मुसाफिरोंकी जांच-पड़ताल होती थी। मुझे उस समय हुलका-सा बुखार था.! जांच करनेवाले अफसरने मेरा हाथ देखा तो उसे वह