पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४०३

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अस्म-कथा : ६ ५ हो रही है । “यदि यह बात हमारे हाथमें होती तो हम कभीके इस जकातको उठा देते । आप भारत-सरकारके पास अपनी शिकायत ले जाइए ।" सेक्रेटरी ने कहा ।। मैने भारत-सरकारके साथ लिखा-पढ़ी शुरू की; परंतु वहां से पहुंचके अलावा कुछ भी जवाब नहीं मिला। जब मुझे लाई चेम्सफोर्डसे मिलने का अवसर आया, तब अर्थात् दो-तीन वर्षकी लिखा-पढ़ीके बाद कुछ सुनवाई हुई। लार्ड चेम्सफोर्डसे मैंने इसका जिक्र किया तो उन्होंने इसपर आश्चर्य प्रकट किया । वीरमगामके मामलेका उन्हें कुछ पता न था। उन्होंने मेरी बातें गौरके साथ सुनीं और उसी समय टेलीफोन करके वीरमगामके कागज-पत्र मंगाये और वचन दिया कि यदि इसके खिलाफ कर्मचारियोंको कुछ कहना न होगा तो जकात रद कर दी जायगी । इस मुलाकातके थोड़े ही दिन बाद अखबारोंमें पढ़ा कि जकात रद हो गई ।। . इस जीतको मैंने सत्याग्रहकी बुनियाद माना; क्योंकि वीरमगाभ संबंधमें जब बातें हुईं तब बंबई-सरकारके सेक्रेटरीने मुझसे कहा था कि बगसमें इस संबंधमें आपका जो भाषण हुआ था उसकी नकल मेरे पास है । और उसमें मैंने जो सत्याग्रहका उल्लेख किया था उसपर उन्होंने अपनी नाराजगी भी बतलाई । उन्होंने मुझसे पूछा-- “आप इसे धमकी नहीं कहते ? इस प्रकार बलवान् सरकार कहीं धमकीकी परवाह कर सकती है ? " ... मैने जवाब दिया--" यह धमकी नहीं है । यह तो लोकमतको शिक्षित करनेका उपाय है। लोगोंको अपने कष्ट दूर करनेके लिए तमाम उचित उपाय बताना मुझ-जैसोंका धर्म है । जो प्रजा स्वतंत्रता चाहती हैं उसके पास अपनी रक्षाका अंतिम इलाज अवश्य होना चाहिए। आम तौरपर ऐसे इलाज हिंसात्मक होते हैं; परंतु सत्याग्रह शुद्ध अहिंसात्मक शस्त्र है । उसका उपयोग और उसकी मर्यादा बताना मैं अपना धर्म समझता हूं । अंग्रेज सरकार बलवान् है, इस बातपर मुझे संदेह नहीं; परंतु सत्याग्रह सर्वोपरि शस्त्र है, इस विषयमें भी मुझे कोई संदेह नहीं ।” . इसपर उस समझदार सेक्रेटरीने सिर हिलाया और कहा--- "देखेंगे ।