________________
छ ? : शति-नके ३६७ - शांतिनिकेतन राजकोटसे मैं शांति-निकेतन गया। वहांके अध्यापकों और विद्यार्थियोंने मुझपर बड़ी प्रेम-वृष्टि की। स्वागतकी विधिमें सादगी, कला और प्रेमका सुंदर मिश्रण था। वहां काका साहब कालेलकरसे मेरी पहली बार मुलाकात हुई । कालेलकर काका साहब' क्यों कहलाते थे, यह मैं उस समय नहीं जानता था; पर बादको मालूम हुआ कि केशवराव देशपांडे, जो विलायतमें मेरे समकालीन थे और जिनके साथ विलायतों मेरा बहुत परिचय हो गया था, बड़ौदा राज्यमें ‘गंगनाथ विद्यालयका संचालन कर रहे थे। उनकी बहुतेरी भावनाओं में एक यह भी थी कि विद्यालय कुटुंबभाव होना चाहिए। इस कारण वहां तमाम अध्यापकोंके कौटुंबिक नाम रखे गये थे । इसमें कालेलकरको 'काका' नाम दिया था ! फड़के ‘मामा' हुए। हरिहर शर्मा 'अण्णा' बने । इसी तरह और भी नाम रवखे गये । आगे चलकर इस कुटुंब में आनंदानंद (स्वामी') काकाके साथीके रूपमें और पटवर्धन (अप्पा) मामाके मित्रके रूपमें इस कूटूबमें शामिल हुए । इस कुटंबके थे पांचों सज्जन एक-के-बाद एकः मेरे साथ हए । देशपांडे साहेब'के नामसे विख्यात हुए। साहेबको विद्यालय बंद होने के बाद यह कुटुंब तितरबितर हो गया; परंतु इन लोगोंने अपना आध्यात्मिक संबंध नहीं छोड़ा। काका सावं तरह-तरहके अनुभव लेने लगे और इसी क्रम में वह शांति-निकेतनमें रह रहे थे । उसी मंडलके एक और सज्जन चिंतामणि शास्त्री भी वहां रहते थे। ये दोनों संस्कृत पढ़ानेमें सहायता देते थे । शांति-निकेतनमें मेरे मंडलकों अलग स्थानमें ठहराया गया था। वहां मगनलाल गांधी उस मंडलकी देखभाल कर रहे थे और फिनिक्स आश्चमके तमाम नियमोंका बारीकी से पालन कराते थे। मैंने देखा कि उन्होंने शांति-निकेतनमें अपने प्रेम, ज्ञान और उद्योग-शीलताके कारण अपनी सुगंध फैला रक्खी थी। एंड्रूज तो वहां थे ही। पीयर्सन भी थे । जगदानंद बाबू, संतोष बाबू, क्षितिज मोहन बाबू, नगीन बाबू, शरद बाबू, और काली बाजूसे उनका अच्छा परिचय हो गया था।