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अध्याय ४: शांति-निकेतन । 17 एक-दो अध्यापक और कुछ विद्यार्थी शामिल हुए थे। ऐसे प्रयोगोंके फलस्वरूप सार्वजनिक अर्थात् बड़े भोजनालयको स्वावलंबी रखनेका प्रयोग शुरू हो सका था। । परंतु अंतको कुछ कारणोंसे यह प्रयोग बंद हो गया। मेरा यह निश्चित मत हैं कि थोड़े समयके लिए भी इस जग-विख्यात संस्थाने इस प्रयोगको करके कुछ खोया नहीं है और उससे जो-कुछ अनुभव हुए हैं वे उसके लिए उपयोगी साबित हुए थे ! मेरा इरादा शांति-निकेतनमें कुछ दिन रहनेका था; परंतु मुझे विधाता बर्दस्त बहांसे घसीट ले गया । मैं मुश्किलसे वहां एक सप्ताह रहा होगा कि पूनासे गोखलेके अवसानका तार मिला । सारा शांति-निकेतन शोकमें डूब गया । मेरे पास सब मातम-पुरसीके लिए आये । वहां के मंदिर में खास सभा हुई । उस समय वहांका गंभीर दृश्य अपूर्व था। मैं उसी दिन पूनर रवाना हुआ । सायमें पत्नी और मगनलालको लिया। बाकी सब लोग शांति-निकेतनमें रहे। एंड्रूज बर्दबानतक रे’ साथ आये थे। उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या आपको प्रतीत होता है कि हिंदुस्तात सत्याग्रह करनेका समय वेगा ? यदि हां, लो इव ? इसका कुछ खयाल होता है ? ' मैंने इसका उत्तर दिया--- " यह कहना मुश्किल है। अभी तो एक सालतक मैं कुछ करना ही नहीं चाहता । गोखलेने मुझसे वचन लिया है कि मैं एक सालतक भ्रमण करू । किसी भी सार्वजनिक प्रश्नपर अपने विचार न बनाऊं, न' प्रकट करूं । मैं अक्षरशः इस बचनका पालन करना चाहता हूं। इसके बाद भी मैं तबतक कोई बात न कहूंगा, जबतक किसी प्रश्नपर कुछ कहने की आवश्यकता न होगी। इसलिए मैं नहीं समझता कि अगले पांच वर्चतके सत्यान्न करनेका कोई अवसर आवेगा ।" । यहां इतना वा आवश्यक है कि हिंद स्वराज्य में मैंने जो विचार प्रदर्शित किये हैं गोखले उनपर हंसा करते और कहते थै, एक वर्ष तुम हिंदुस्तान में रहकर देखोगे तो तुम्हारे में विचार अपने-अप' ठिकाने लग जायंगे ।'