पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४२१

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आत्म-कथा : भाग १ पर इससे सहायक मित्रमंडलीमें बड़ी खलबली मची। जिस कुएं में बंगलेके मालिकका भाग था उसमें से पानी भरने में दिक्कत आने लगी । चरस' हांकनेवालेको भी यदि हमारे पानीके छींटे लग जाते तो उसे छूत लग जाती है। उसने हमें गालियां देना शुरू किया। इधाभाईको भी वह सताने लगा। मैंने सबसे कह रक्खा था कि गालियां सह लेना चाहिए और दृढ़तापूर्वक पानी भरते रहना चाहिए । हमको चुपचाप गालियां सुनते देखकर चरसवाला शमिंदा हुआ और उसने हमारा पिंड छोड़ दिया; परंतु इससे आर्थिक सहायता मिलनी बंद हो गई । जिन भाइयोंने पहलेसे उन अछूतोंके प्रवेशपर भी, जो अाश्रमके नियमों का पालन करते हों, शंका खड़ी की थी उन्हें तो यह आशा ही नहीं थी कि अाश्रममें कोई अंत्यज आ जायगा । इधर आर्थिक सहायता बंद हुई, उधर हम लोगों बहिष्कारकी अफवाह मेरे कानपर आने लगी। मैंने अपने साथियोंके साथ यह विचार कर रखा था कि यदि हमारा बहिष्कार हो जाय और हमें कहीं से सहायता न मिले तो भी हमें अहमदाबाद न छोड़ना चाहिए। हम अछूतोंके मुहल्लोंमें जाकर बस जायेंगे और जो-कुछ मिल जायगा उसपर अथवा मजदूरी करके गूजर कर लेंगे । अंतको मगनलालने मुझे नोटिस दिया कि अगले महीने आश्रमखर्चके लिए हमारे पास रुपये न रहेंगे । मैंने धीरजके साथ जवाब दिया--" तो हम लोग अछूतोंके मुहल्लोंमें रहने लगेंगे ।” मुझपर यह संकट पहली ही बार नहीं आया था; परंतु हर बार अख़ीरमें जाकर उस सांवलियाने कहीं-न-कहींसे मदद भेज दी है ।। मगनलालके इस नोटिसके थोड़े ही दिन बाद एक रोज सुबह किसी बालकने आकर खबर दी कि बाहर एक मोटर खड़ी है । एक सेठ आपको बुला रहे हैं । मैं मोटरके पास गया । सेठने मुझसे कहा--- " मैं आश्रमको कुछ मदद देना चाहता हूं, आप लेंगे ? ' मैंने उत्तर दिया--"हां, आप दें तो मैं जरूर ले लूंगा । और इस समय तो मुझे जरूरत भी हैं ।' “मैं कल इसी समय यहां आऊंगा तो आप आश्रम में ही मिलेंगे न ? ?' मैने कहा--- " हां।" और सेठ अपने घर गथे । दूसरे दिन नियत समयपर मोटरका भोंपू बजा । बालकोंने मुझे खबर की । वह सेट अंदर नहीं आये ।