पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४३६

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अध्याय १४ : अहिंसादेवीका साक्षात्कार कानूनकी गलियोंमें निकल भागने की कोशिश । कांग्रेसका अर्थ यहां है बम-गोले और कहना कुछ, करना कुछ । ऐसा खयाल कांग्रेसके बारेमें यहां सरकार और सरकारकी सरकार यानी निलहे मालिकोंके मन था; परंतु हमें यह साबित करना था कि कांग्रेस ऐसी नहीं, दूसरी ही वस्तु है। इसलिए हमने यह निश्चय किया था कि कहीं भी कांग्रेसका नाम न लिया जाय और लोगोंको कांग्रेसके भौतिक दैका भी परिचय न कराया जाय। हमने सोचा कि वे कांग्रेसके अक्षरको--- मामको न जानते हुए उसकी आत्माको जाने और उसका अनुसरण करें तो बस है। यहीं वास्तविक बात है ! | इसलिए कांग्रेसकी तरफसे किसी छिपे या प्रकट दूतोंके द्वारा कोई जमीन तैयार नहीं कराई गई थी; कोई पेशबंदी नहीं की गई थी । राजकुमार शुक्लमें हजारों लोगोंमें प्रवेश करनेकी सामर्थ्य न थी, वहां लोगोंके अंदर किसीने भी आज तक कोई राजनैतिक काम नहीं किया था । चंपारनके सिवा बाहकी दुनियाको वे जानते ही न थे। फिर भी उनका और मेरा मिलाप किसी पुराने मित्रके मिलापसा था । अतएव यह कहने मुझे कोई अत्युक्ति नहीं मालूम होती, बल्कि यह अक्षरशः सत्य है कि मैंने वहां ईश्वरका, अहिंसाका और सत्यका, साक्षात्कार किया । जब साक्षात्कार-विष्यक अपने इस अधिकारपर विचार करता हूं तो मुझे उसमें लोगोंके प्रति प्रेमके सिवा दूसरी कोई बात नहीं दिखाई पड़ती और यह प्रेम अथवा अहिंसाके प्रति मेरी अचल श्रद्धाके सिवा और कुछ नहीं है । | चंपारनका यह दिन मेरे जीवन ऐसा था, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता । यह मेरे तथा किसानों के लिए उत्सबका दिन था। मुझपर सरकारी कानूनके मुताबिक मुकदमा चलाया जानेवाला था; परंतु सच पूछा जाय तो मुकदमा सरकारपर चल रहा था। कमिश्नरने जो जाल मेरे लिए फैलाया था उसमें उसने सरकारको ही फंसा सारा ।