पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४३७

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आत्म-कथा : भाग ५ १५ मुकदमा वापस 14 मुकदमा चला। सरकारी वकील, मजिस्ट्रेट वगैरा चिंतित हो रहे थे । उन्हें सूझ नहीं पड़ता था कि क्या करें । सरकारी वकील तारीख बढ़ानेकी कोशिश कर रहा था । मैं बीचमें पड़ा और मैंने अर्ज किया कि "तारीख बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है; क्योंकि मैं अपना यह अपराध कबूल करना चाहता हूं कि मैंने चंपारन छोड़नेकी नोटिसका अनादर किया है।" यह कहकर मैंने जो अपना छोटा-सा कंतव्य तैयार किया था वह पढ़ सुनाया । वह इस प्रकार था-- • * अदालतको आज्ञा लेकर मैं संक्षेपमें यह बतलाना चाहता हूं कि जाब्ता फौजदारीको दफा १४४की रूसे दिये नोटिस द्वारा मुझे जो आज्ञा दी गई है, उसकी स्पष्ट अवज्ञा मैंने क्यों की । मेरी समझ शह अवज्ञाकी नहीं बल्कि स्थानीय अधिकारियों और मेरे बीच मतभेदका प्रश्न है । मैं इस प्रदेशमें जन-सेवा तथा देश-सेवा करने के विचारसे आया हूं। यहां आकर उन रैयतको सहायता करने के लिए मुझसे बहुत आग्रह किया गया था, जिनके साथ कहा जाता है कि निलहे साहब अच्छा व्यवहार नहीं करते; इसीलिए मैं यहां आया हूँ। पर जबतक मैं सब बातें अच्छी तरह जान न लेता, तबतक उन लोगों की कोई सहायता नहीं कर सकता था। इसलिए यदि हो सके तो अधिकारियों और निलहे। साहबोंकी सहायताले में सब बातें जानने के लिए अया हूं। मैं किसी दूसरे उद्देश्यसे यहां नहीं अथा हूं। मुझे यह विश्वास नहीं होता कि मेरे यहां आने से किसी प्रकार शांति-भंग या प्राण-हानि हो सकती है। मैं कह सकता हूं कि मुझे ऐसी बातोंका बहुत अनुभव है। अधिकारियोंको जो कठिनाइयां होती है, उनको मैं समझता हूं और मैं यह भी मानता हूँ कि उन्हें जो सूचना मिलती है, वे केवल उसीके अनुसार काम कर सकते। हैं। कानून माननेवाले व्यक्तिको तरह मेरी प्रवृत्ति यही होनी चाहिए। थी, और ऐसी प्रवृत्ति हुई थी कि मैं इस आश का पालन करू; परंतु