पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४३९

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४३३ - थई । म ५ इंसाफ करनेके लिए तत्पर नजर आया । उसने कहा कि आप जो-कुछ कागजपत्र या और कुछ देखना चाहें, देख सकते हैं। जब कभी मिलना चाहें, जरूर मिल सकते हैं । । दूसरी तरफ सारे भारतवर्षको सत्याग्रहका अथवा कानूनके सविनय भंगका पहला स्थानिक पदार्थ-पाठ मिला। अखबारोंमें इस प्रकरणकी खुव चर्चा चली और चंपारनको तथा मेरी जांचको अकल्पित विज्ञापन मिल गया ।। मुझे अपनी जांचके लिए जहां एक ओर सरकारके निष्पक्ष रहनेकी जरूरत थी, तहां दूसरी ओर अखबारोंमें चर्चा होने की और उनके संवाद-दालाग्रोंकी जरूरत नहीं थी। यही नहीं, बल्कि उनकी कड़ी टीका और जांचक बड़ी-बड़ी रिपोट से हानि होने का भी भय था। इसलिए मैंने मुख्य-मुख्य अखबारोंके संपादकोंसे अनुरोध किया कि “आप अपने संवाददाताओंको भेजनेका खर्च न उठावें । जितनी बातें प्रकाशित करने योग्य होंगी, वह मैं आपको खुद ही भेजता रहूंगा और खबर भी देता रहूंगा।" इधर चंपारनके निलहे मालिक खूब बिगड़े हुए थे, यह मैं जानता था; और यह भी मैं समझता था कि अधिकारी लोग भी मनमें खुश न रहते होंगे। अखबारोंमें जो झूठी-सच्ची खबरें छपती उनसे वे और भी चिड़ते । उनकी चिढ़का असर मुझपर तो क्या होता; परंतु बेचारे गरीब, डरपोक रैय्यतपर उनका गुस्सा उतरे बिना न रहता और ऐसा होने से जो वास्तविक स्थिति में जानना चाहता था उसमें विघ्न पड़ता। निलहोकी तरफसे जहरीला आंदोलन शुरू हो गया था। उनकी तरफसे अखबारोंमें मेरे तथा भेरे साथियों के विषय में मनमानी झूठी बातें फैलाई जाती थीं; परंतु मेरी अत्यंत सावधानीके कारण, और छोटीसे-छोटी बातमें भी सत्यपर दृढ़ रहने की आदतके कारण, उनके सब तीर बेकार गये ।। ... बृजकिशोरबाबूकी अनेक तरहसे निंदा करनेमें निलहोंने किसी बातकी कमी न रक्खी थी; परंतु वे ज्यों-ज्यों उनकी निंदा करते गये त्यों-त्यों बृजकिशोरबाबूकी प्रतिष्ठा बढ़ती गई । ऐसी नाजुक हालतमें मैंने संवाददाताओंको वहां आनेके लिए बिलकुल उत्साहित नहीं किया। नेताओंको भी नहीं बुलाया। मालवीयजीने मुझे कहला