पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४४३

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४२६ आत्म-कथा : भाग ५ ? ও साथी बृजकिशोरबाबू और राजेंद्रबाबूकी जोड़ी अद्वितीय थी”। उन्होंने प्रेम से मुझे ऐसा अपंग बना दिया था कि उनके बिना मैं एक कदम भी आगे न रख सकता था । उनके शिष्य कहिए, या साथी कहिए, शम्भूबाबू, अनुग्रहबाबू, धरणीबाबू और रामनवमीबाबू--ये वकील प्रायः निरंतर साथ-साथ ही रहते थे । विंध्याबाबू और जनकधारीबाबू भी समय-समयपर रहते थे । यह तो हुआ बिहारी-संघ । इनका मुख्य काम था लोगोंके बयान लिखना । इसमें अध्यापक कृपलानी भला बिना शामिल हुए कैसे रह सकते थे ? सिंधी होते हुए भी वह बिहारी से भी अधिक बिहारी हो गये थे । मैंने ऐसे थोड़े सेवकों को देखा है जो जिस प्रांत में जाते हैं वहीं के लो गोंमें दूध-शक्करकी तरह घुल-मिल जाते हैं, और किसीको यह नहीं मालूम होने देते कि यह गैर प्रांतके हैं। कृपलानी इनमें एक हैं । उनके जिम्मे मुख्य काम था द्वारपाल का; दर्शन करने वालों से मुझे बचा लेने में ही उन्होंने उस समय अपने जीवन की सार्थकता मान ली थी । किसी को हंसी-दिल्लगी से और किसी को अहिंसक धमकी देकर वह मेरे पास आनेसे रोकते थे । रात को अपनी अध्यापकी शुरू करते और तमाम साथियों को हंसा मारते और यदि कोई डरपोक आदमी वहां पहुँच जाता तो उसका हौसला बढ़ाते । मौलाना मजहरुलहकने मेरे सहायकके रूपमें अपना हक लिखवा रक्खा था और महीनेमें एक-दो बार आकर मुझसे मिल जाया करते । उस समयके उनके ठाट-बाट और शानमें तथा श्राजकी सादगीमें जमीन-आसमानका अंतर है । वह हम लोगों में आकर अपने हृद्यको तो मिला जाते, परंतु अपने साहबी ठाट-बाटके कारण बाहरके लोगों को वह हमसे भिन्न मालूम होते थे । - ज्यों-ज्यों में अनुभव प्राप्त करता गया त्यों-त्यों मुझे मालूम हुआ कि यदि चंपारनमें ठीक-ठीक काम करना हो तो गाँवों में शिक्षाका प्रवेश होना चाहिए । वहां लोगोंका अज्ञान दयाजनक था । गाँवमें लड़के-बच्चे इधर-उधर भटकते फिरते थे, या माँ-बाप उन्हें दो-तीन पैसे रोज की मजदूरी परदिन-भर नीलके