पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४४५

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४२८ अत्मि-कथं? : भंग ५ बहुत अच्छी तरह चल निकला और उनका आत्म-विश्वास बढ़ा । उन्हें अपने काममें रस भी आने लगा । अवंतिका बाई की पाठशाला आदर्श बन गई । उन्होंने अपनी पाठशालामें जीवन दाल् दिया । वह इस कामको जानती भी खूब थीं । इन बहनोंकी माफर्त देहातके स्त्री-समाजमें भी हमारा प्रवेश हो गया था । परंतु मुझे पढ़ाई तक ही न रुक जाना था । गां वोंमें गंदगी बेहद थी । रास्तों और गलियों में कूड़े और कंकर का ढेर, कुओं के पास कीचड़ और बदबू, प्रांगन इतने गंदे कि देखा न जाता था । बड़े-बूढ़ोंको सफाई सिखानेकी जरूरत थी । चंपारनके लोग बीमारियोंके शिकार दिखाई पड़ते थे । इसलिए जहाँतक हो सके उनका सुधार करने और इस तरह लोगोंके जीवनके प्रत्येक विभागमें प्रवेश करनेकी इच्छा थी । इस काममें डाक्टर की सहायताकी जरूरत थी । इसलिए मैंने गोखलेकी समितिसे डाक्टर देवको भेजनेका अनुरोध किया । उनके साथ मेरा स्नेह तो पहले ही हो चुका था । छः महीनेके लिए उनकी सेवाका लाभ मिला । यह तय हुआ कि उनकी देख-रेखमें शिक्षक और शिक्षिका सुधारका काम करें । - इनके सबके साथ यह बात तय पाई थी कि इनमेंसे कोई भी निलहोंके शिकायतोंके झगड़े में न पड़े । राजनैतिक बातोंको न छुऍ । जो शिकायत लावें उनको सीधा मेरे पास भेज दें । कोई भी अपने क्षेत्र और कामको छोड़कर एक कदम इधर-उधर न हों । चंपारनके मेरे इन साथियोंका नियम-पालन अद्भुत था । मुझे ऐसा कोई अवसर याद नहीं श्राता कि जब किसीन भी नियमों व हिदायतोंका उल्लंघन किया हो । - १८ । ग्राम-प्रवेश ।

बहुत करके हर पाठशाला में एक पुरुष और एक स्त्रीकी योजना की थी। उन्हींकी मार्फत दवा और सुधार के काम करने का निश्चय किया था । स्त्रियों के द्वारा स्त्री-समाज में प्रवेश करना था । दवाका कामं बहुत श्रासान कर दिया था । अंडीका तेल, कुनैन और मरह्म-- इतनी चीजें हर पाठशाला में रखी गई थीं ।