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पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४४९

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४३२ आत्म-कथा: भाग ५ लिखी जा सकती थी और अंतको जो कानून बना वह न बन पाता । निलहों की सत्ता बहुत प्रबल थी । रिपोर्ट हो जाने के बाद भी कितनों ने बिलका विरोध किया था, परंतु सर एडवर्ड गेट दृढ़ रहे और समिति की सिफारिशोंका पूरा-पूरा पालन उन्होंने कराया । इस तरह सौ वर्षका पुराना यह तीन कठिया' कानून रद हुआ और उसके साथ ही निलहों का राज्य भी अस्त हो गया । रैयतने, जो दबी हुई थी, अपने बलको कुछ पहचाना और उसका यह वहम दूर होगया किं नीलका दाग वो धोये नहीं धुलता । - मेरी इच्छा थी कि चंपारन में जो रचनात्मक कार्य आरंभ हुआ है उसे जारी रखकर लोगों में कुछ वर्षों तक काम किया जाय और अधिक पाठशालाएं खोल कर अधिक गांवोंमें प्रवेश किया जाय । क्षेत्र तो तैयार था; परंतु मेरे मनसूबे ईश्वरने बहुत बार पार नहीं पड़ने दिये हैं । मैंने सोचा था एक और दैवने मुझे दूसरे ही काममें ले घसीटा । - २० मजदूरों से संबंध अभी मैं चंपारन में जांच-समिति का काम खतम कर ही रहा था कि इतने में खेड़ासे मोहन लाल पंड्या और शंकरलाल परीखका पत्र मिला कि खेड़ा जिलेमें फसल नष्ट हो गई है और उसका लगान माफ होना जरूरी है । आप आइये और वहां चलकर लोगों को राह दिखाइए । वहां जाकर जबतक मैं खुद जांच न करलूं, तबतक कुछ सलाह देने की इच्छा मुझे न थी और न ऐसी सामथ्र्य और साहस ही था । - . दूसरी ओर श्रीमती अनसूया बहनकी चिट्ठी उनके ‘मजूर-संघ' के संबंधमें मिली । मजदूरों का वेतन कम था । बहुत दिनोंसे उनकी मांग थी कि वेतन बढ़ाया जाय । इस संबंध में उनका पथ-प्रदर्शन करनेका उत्साह मुझे था । । यह काम यों तो छोटा-सा था; परंतु मैं उसे दूर बैठकर नहीं कर सकता था । इससे में तुरंत अहमदाबाद पहुंचा । मैंने सोचा तो यह था कि दोनों कामोंकी