पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अध्याय २० : मजदूरोंसे संबंध ४३३ जांच करके थोड़े ही समयमें चंपारन लौट आऊंगा और वहांके रचनात्मक कामको संभाल लूंगा । परंतु अहमदाबाद पहुंचने के बाद ऐसे काम निकल आये कि मैं बहुत समय तक चंपारन न जा सका और जो पाठशालायें वहां चलती थीं वे एकके बाद एक टूट गई । साथियों ने और मैंने जो कितने ही हवाई किले बांध रक्खे थे, वे कुछ समयके लिए टूट गये । चंपारन में ग्राम-पाठशाला और ग्राम-सुधार के अलावा गोरक्षा का काम भी मैंने अपने हाथ में ले लिया था । अपने भ्रमण में मैं यह बात देख चुका था कि गोशाला और हिंदी-प्रचार के काम का ठेका मारवाड़ी भाइयों ने ले लिया है । बेतिया में एक मारवाड़ी सज्जन ने अपनी धर्मशाला में मुझे आश्रय दिया था । बेतियाके मारवाड़ी सज्जनों ने मुझे उनकी गोशाला की ओर आकृष्ट किया था । गोरक्षाके संबंध में जो विचार मेरे आज हैं वही उस समय बन चुके थे । गोरक्षा का अर्थ है गोवंश की वृद्धि, गोजाति का सुधार, बैलसे मर्यादित काम लेना, गोशा ला को आदर्श दुग्धालय बनाना, इत्यादि । इस काममें मारवाड़ी भाइयोंने पूरी मदद देने का वचन दिया था; परंतु मैं चंपारनमें जमकर नहीं बैठ सका । इसलिए बह काम अधूरा ही रह गया । बेतियामें गोशाला तो आज भी चल रही है; परंतु वह आदर्श दुग्धालय नहीं बन सकी । चंपारनमें बैलोंसे आज भी ज्यादा काम लिया जाता है । हिंदू-नामधारी अब भी बैलोंको निर्दयतासे पीटते हैं और इस तरह अपने धर्मको डुबोते हैं। यह अफसोस मुझे हमेशा के लिए रह गया है । मैं जब-जब चंपारन जाता हूं तब-तब उन अधूरे रहे कामों को स्मरण करके एक लंबी सांस छोड़ता हूं और उन्हें अधूरा छोड़ देनेके लिए मारवाड़ी भाइयों और बिहारियोंका मीठा उलाहना सुनता हूं । पाठशालाओं का काम तो एक नहीं दूसरी रीति से दूसरी जगह चल रहा है; परंतु गो-सेवाके कार्यक्रम की तो जड़ ही नहीं जमी थी; इसलिए उसे प्रावश्यक दिशामें गति नहीं मिल सकी । । अहमदाबादमें खेड़ाके कामके लिए सलाह-मशवरा चल रहा था कि इतनेमें मजदूरोंका काम मैंने अपने हाथमें ले लिया । इसमें मेरी स्थिति बड़ी नाजुक थी । मजदूरोंका पक्ष मुझे मजबूत मालूम