पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४३६ आत्म-कथां : भाग ५

मेरे लिए वह खास प्रलोभन था कि वह जमीन जेलके निकट है । मैंने यह माना हैं कि सत्याग्रहश्रम वासीके भाग्यमें जेल तो लिखा ही है, जेलका पड़ौस पसंद पड़ा । इतना तो मैं जानता था कि हमेशा जेलके लिए वैसा ही स्थान ढूंढ़ा जाता है, जिसके आस-पासकी जगह साफ-सुथरी हो ।

     कोई आठ दिनोंमें ही जमीनका सौदा हो गया । जमीनपर मकान एक भी न था । न कोई झाड़-पेड़ ही था । उसके लिए सबसे बड़ी सिफारिश तो यह थी कि वह एकांत और नदी के किनारे पर है । शुरूमें हमने तंबूमें रहनेका निश्चय किया । रसोईके लिए टीनका एक काम-चलाऊ छप्पर बना लिया और सोचा कि स्थायी मकान धीरे-धीरे बना लेंगे ।
     इस समय आश्रममें काफी आदमी थे । छोटे-बड़े कोई चालीस स्त्रीपुरुष थे । इतनी सुविधा थी कि सब एक ही रसोईमें खाते थे । योजनाकी कल्पना मेरी थी, उसे अमलमें लानेका भार उठानेवाले तो नियमानुसार स्व: मगनलाल ही थे ।
     स्थायी मकान बननेके पहले असुविधाका तो कोई पार ही न था । बरसातका मौसम सिरपर था । सारा सामान चार मील दूर शहरसे लाना था । इस उजाड़ जमीनमें सांप वगैरा तो थे ही । ऐसे उजाड़ स्थानमें बालकोंको संभालनेकी जोखिम ऐसी-वैसी नहीं थी । सांप वगैराको मारते न थे; मगर उनके भयसे मुक्त तो हममेंसे कोई न था, आज भी नहीं है ।
     हिंसक जीवोंको न मारनेके नियमका यथाशक्ति पालन फिनिक्स, टॉलस्टाय-फार्म और साबरमती-तीनों जगहों में किया है। तीनों जगहोंमें उजाड़ जंगलमें रहना पड़ा है । तीनों जगहोंमें सांप वगैरा का उपद्रव खूब ही था; मगर तो भी अबतक एक भी जान हमें खोनी नहीं पड़ी है। इसमें मेरे-जैसा श्रद्धालु तो ईश्वरका हाथ, उसकी कृपा ही देखता है । ऐसी निरंथक शंका कोई न करे कि ईश्वर पक्षपात नहीं करता, मनुष्यके रोजके काममें हाथ डालनेको वह बेकार नहीं बैठा है । अनुभवकी दूसरी भाषामें इस भावको रखना मैं नहीं जानता । ईश्वरकी कृतिको लौकिक भाषामें रखते हुए भी मैं जानता हूं कि उसका 'कार्य' अवर्णनीय है; किंतु अगर पामर मनुष्य उसका वर्णन करे तो उसके पास तो अपनी तोतली बोली ही होगी । आम तौर पर सांपको न मारते हुए भी वहांका