पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४५६

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अध्याय २२:उपवास ४३९ इसका त्र्प्रधिकार था । इस हड़ताल के विरुद्ध त्र्प्रचल रहनेमें सेठ त्र्प्रंबालाल त्र्प्रग्रसर थे । उनकी दृढ़ता आश्चर्यजनक थी । उनकी स्पष्ट-हृदयता भी मुझे उतनी ही रुची । उनके खिलाफ लड़ना मुझे प्रिय लगा । इनके-जैसे अग्रसर जहाँ विरोधी-पक्षमें हों, उपवासके द्वारा उनपर पड़नेवाला बुरा त्र्प्रसर मुझे खटका । फिर मेरे ऊपर उनकी पत्नी सरलादेवीका सगी बहनके समान स्नेह था । मेरे उपवाससे होनेवाली उनकी व्यग्रता मुझसे देखी नहीं जाती थी । मेरे पहले उपवासमें तो अनसूया बहन और दूसरे कई मित्र तथा कुछ मजदूर शामिल हुए और अधिक उपवास न करनेकी जरूरत मैं उन्हें मुश्किलसे समझा सका । इस तरह चारों औरका वातावरण प्रेममय बन गया । मिलमालिक तो केवल दयाकी ही खातिर समझौता करनेके रास्ते ढूंढ़ने लगे । अनसूया बहनके यहां उनकी बातचीत होने लगी । श्री त्र्प्रानंदशंकर ध्रुब भी बीचमें पड़े। ग्रन्तमें वह पंच चुने गये और हड़ताल छूटी । मुझे तीन ही दिन उपवास करना पड़ा । मालिकोंने मजदूरोंको मिठाई बांटी । इक्कीसवें दिन समझौता हुआ । समझौते का सम्मेलन हुआ। उसमें मिलमालिक त्र्प्रौर उत्तर विभागके कमिशनर आये थे । कमिशनरने मजदूरोंको सलाह दी थी-- “ तुम्हें हमेशा मि. गांधी की बात माननी चाहिए । ” इन्हीं कमिशनर साहबके खिलाफ इस घटनाके कुछ दिनों बाद तुरंत ही मुझे लड़ना पड़ा था ! समय बदला, इसलिए वह भी और खेड़ाके पाटीदारोंको मेरी सलाह न माननेके लिए कहने लगे । एक मजेदार मगर उतनी ही करुणाजनक घटनाका भी यहां उल्लेख करना उचित है । मालिकोंकी तैयार कराई मिठाई बहुत और् सवाल यह हो पड़ा था कि हजारों मजदूरोंमें वह बांटी किस तरह जाय ? यह समझकर कि जिस पेड़के आश्रयमें मजदूरोंने प्रतिज्ञा की थी वहींपर बांटना उचित होगा, त्र्प्रौर दूसरी किसी जगह हजारों मजदूरोंको इकटठा करना भी असुविधाकी बात थी, उसके आसपासके खुले मैदानमें मिठाई बांटनेकी बात तय पाई थी । मैंने त्र्प्रपने भोलेपनमें मान लिया कि इक्कीस दिनों तक अनुशासनमें रहे मजदूर बिना किसी प्रयत्न के ही पंक्तिमें खड़े होकर मिठाई ले लेंगे और त्र्प्रधीर होकर मिठाई पर हमला नहीं कर बैठेंगे; किन्तु मैदानमें बांटनेके दो-तीन तरीके आजमाये