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*** आत्म-कथा: भाग ५

प्रविरोधी तौरपर किसीके जेल जानेके पहले ही खेड़ाकी लड़ाई खत्म हो जाय। उन्होनें इस खेत की प्याज खोद लानेका बीड़ा उठाया । सात-आठ आदमियों ने उनका साथ दिया । 

सरकार उन्हें पकड़े बिना भला कैसे रहती ? मोहनलाल पंड्या और उनके साथी पकड़े गए। इससे लोगों का उत्साह बढ़ा ! लोग जहाँ पर जेल ईत्यादि से निर्भय बनते हैं वहाँ राजदंड लोगों का दबाने के बदले उलटा बहादुरी देता है । अदालत में लोगोंके झुंड मुकदमा देखने इक्कठा होने लगे । पंड्या को तथा उनके साथियों को बहुत थोड़े दिनों की कैद मिली । मैं मानता हुँ कि अदालत का फैसला गलत था । प्याज उखाड़ने की कार्रवाई चोरी की कानूनी व्याख्या में नहीं आती है; किंतु अपील करने की श्रोर किसी की रुचि ही नहीं थी ।

    जेल जानेवालों को पहुंचाने के लिए एक जलूस गया, और उस दिन से मोहनलाल पंड्याने जो ‘प्याज-चोर' की सम्मानित उपाधि लोगोंसे पाई उसका गौरव उन्हें आज तक प्राप्त हैं । 
  अब यह वर्णन करके कि इस लड़ाईका कैसा और किस तरह अंत आया, यह खेड़ा-प्रकरण पूरा करूँगा । 
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                     खेड़ाकी लड़ाई का अंत

इस लड़ाईका अंत विचित्र रीति से हुआ । यह स्पष्ट था कि लोग थक गये थे । जो लोग शाम भर खड़े थे, उन्हें अंततक ख्वार होने देने में संकोच होता था । मेरा झुकाव इस ओर था कि एक सत्याग्रही को जो उचित मालूम हो सके, ऐसा कोई उपाय अगर इस युद्ध को समाप्त करने का मिल जाय तो वही करना चाहिए । सो ऐसा एक अकल्पित उपाए आप-ही-आप आ भी गया । नड़ियाद ताल्लुकदार मामलतदार (तहसीलदार) ने खबर भेजी कि अगर धनी पाटीदार लगान अदा कर दें तो गरीबों का लगान मुल्तवी रहेगा । मैंने इस विषय तंहरीरी हुक्म माँगा । यह मिल भी गया । मामलतदार तो अपने ही ताल्लुकेकी जिम्मेदारी ले सकता हैं । सारे जिलेकी ओरसे कलेक्टर ही कह सकता है । इसलिए मैंने