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 अध्याय २६ : ऐक्यके प्रयत्न ४४७

करने या स्वत्व गंवाकर किसीको खुश करना में जानता ही नहीं था; किंतु मैं वही से यह भी समझता आया था कि मेरी अहिंसा की कसौटी और उसका विशाल प्रयोग इस ऐक्यके सिलसिले में ही होनेवाला है । अब भी मेरी यह राय कायम है । प्रतिक्षण मेरी कसौटी ईश्वर कर रहा है । मेरा प्रयोग आजा भी जारी है ।

       इन विचारों को साथ लेकर मै बंबई के बंदरपर उतरा था । इसलिए इन भाइयों का मिलाप मुझे अच्छा लगा ! हमारा स्नेह बढ़ता था । हमारा परिचय होने के बाद तुरंत ही सरकार ने अली भाइयोंको जीते-जी ही दफ़न कर दिया था । मौलाना मुहम्मदअली को जब-जब इजाजत मिलती, वह मुझे बैतूल जेल से या छिदवाड़ा जेल से लंबे-लंबे पत्र लिखा करते थे । मैंने उनसे मिलने जानेकी प्रार्थना सरकारसे की मगर उसकी इजाजत न मिली ।
     अली भाइयों के जेल जानेके बाद कलकत्ता मुस्लिम-लीग की सभा में मुझे मुसलमान भाई ले गये थे । वहाँ मुझसे बोलने के लिए कहा गया था । मैं बोला । अली भाइयों को छुड़ाने का धर्म मुसलमानों को समझाया ।

इसके बाद वे मुझे अलीगढ़-कॉलेज में भी ले गये थे । वहाँ मैने मुसलमानों को देशके लिए फकीरी लेनेका न्योता दिया था ।

    अली भाइयों को छुड़ाने के लिए मैंने सरकार के साथ पत्र-व्यवहार चलाया । इस सिलसिले में इन भाइयों की खिलाफंत-संबंधी हलचलका अध्ययन किया । मुसलमानों के साथ चर्चा की । मुझे लगा कि अगर मैं मुसलमानों का सच्चा मित्र बनना चाहूँ तो मुझे अली भाइयों को छुड़ाने में और खिलाफत का प्रश्न न्यायपूर्वक हल करने में पूरी मदद करनी चाहिए । खिलाफत का प्रश्न मेरे लिए सहल था । उसके स्वतंत्र गुण-दोष तो मुझे देखने भी नहीं थे । मुझे ऐसा लगा कि उस संबंध में मुसलमानों की मांग नीति-विरुद्ध न हो तो मुझे उसमें मदद देनी चाहिए । धर्म के प्रश्न में श्रद्धा सर्वोपरि होती है। सबकी श्रद्धा एक ही वस्तु के बारे में एक ही सी होतो फिर जगत में एक ही धर्म हो सकता है । खिलाफतसंबंधी मांग मुझ नीति-विरुद्ध नहीं जान पड़ी । इतना ही नहीं, बल्कि यही मांग इंग्लैंड के प्रधानमंत्री लाइड जार्ज ने स्वीकार की थी, इसलिए मुझे तो उनसे अपने वचन का पालन कराने भरका ही प्रयत्न करना था । वचन ऐसे स्पष्ट शब्दों में थे कि मर्यादित गुणदोष की परीक्षा मुझे महज अपनी अन्तरात्मा को प्रसन्न करने की